तुम मेरे थे मेरे हो मेरे रहोगे (आ या ना आ मुरली वारे)
हमने किसी को बुलाया और वो नहीं आया तो हमारा मूड ऑफ हो जाता है। हमारी तबीयत खराब थी और वो मिलने नहीं आये - तो सारे जीवन की दुश्मनी मोल लेते हैं। ये संसार में होता है।
लेकिन भक्त भगवान् से कहता है - आपको सुख मिलता है तो आइये वरना न आइये। हमें कोई शिकायत नहीं है। पतंग और पतंग उड़ाने वाले के बीच में एक धागा होता है, उसी तरह भक्त और भगवान् के बीच विरह वेदना होती है। उस विरह वेदना के अंडर पतंग होती है। भक्त भगवान् से कहता है, "वो धागा जोड़े रहियेगा पतंग कट न पाए। वो विरह वेदना हमको दे दीजिये। हमारा प्यार विरह में और बढ़ेगा। हम अनंत काल तक बाट जोहते रहेंगे, निराश नहीं होंगे।" प्रेम में निराशा शत्रु है - जो निराशा लाता है वो संसार में भी सफल नहीं हो सकता, परमार्थ में भी सफल नहीं हो सकता। तो भक्त कहता है, "आपका व्यवहार चाहे उल्टा हो, सीधा हो या न्यूट्रल, हमारे प्रेम में कोई भी कमी नहीं आएगी।"
गौरांग महाप्रभु कहते हैं - आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मामदर्शनान् मर्महतां करोतु वा। यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्-तु स एव नापरः।
हे श्री कृष्ण! चाहे मुझे चिपटाकर प्यार कर लो, या चाहे चक्र से सिर काट दो, या उदासीन बनकर ऐसे व्यवहार करो जैसे तुम मुझे पहचानते ही नहीं। तुम्हें जिसमें सुख मिले वो करो। लेकिन इससे हमारे प्यार में इन व्यवहारों से कोई अंतर नहीं आएगा, बल्कि बढ़ता ही जायेगा। प्रेम का स्वभाव है "प्रतिक्षण वर्धमानं"।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Braj Ras Madhuri Vol. 1 - Hindi (New Edition)
Nishkam Prem - Hindi
तुम मेरे थे मेरे हो मेरे रहोगे (आ या ना आ मुरली वारे)
हमने किसी को बुलाया और वो नहीं आया तो हमारा मूड ऑफ हो जाता है। हमारी तबीयत खराब थी और वो मिलने नहीं आये - तो सारे जीवन की दुश्मनी मोल लेते हैं। ये संसार में होता है।
लेकिन भक्त भगवान् से कहता है - आपको सुख मिलता है तो आइये वरना न आइये। हमें कोई शिकायत नहीं है। पतंग और पतंग उड़ाने वाले के बीच में एक धागा होता है, उसी तरह भक्त और भगवान् के बीच विरह वेदना होती है। उस विरह वेदना के अंडर पतंग होती है। भक्त भगवान् से कहता है, "वो धागा जोड़े रहियेगा पतंग कट न पाए। वो विरह वेदना हमको दे दीजिये। हमारा प्यार विरह में और बढ़ेगा। हम अनंत काल तक बाट जोहते रहेंगे, निराश नहीं होंगे।" प्रेम में निराशा शत्रु है - जो निराशा लाता है वो संसार में भी सफल नहीं हो सकता, परमार्थ में भी सफल नहीं हो सकता। तो भक्त कहता है, "आपका व्यवहार चाहे उल्टा हो, सीधा हो या न्यूट्रल, हमारे प्रेम में कोई भी कमी नहीं आएगी।"
गौरांग महाप्रभु कहते हैं - आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मामदर्शनान् मर्महतां करोतु वा। यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्-तु स एव नापरः।
हे श्री कृष्ण! चाहे मुझे चिपटाकर प्यार कर लो, या चाहे चक्र से सिर काट दो, या उदासीन बनकर ऐसे व्यवहार करो जैसे तुम मुझे पहचानते ही नहीं। तुम्हें जिसमें सुख मिले वो करो। लेकिन इससे हमारे प्यार में इन व्यवहारों से कोई अंतर नहीं आएगा, बल्कि बढ़ता ही जायेगा। प्रेम का स्वभाव है "प्रतिक्षण वर्धमानं"।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Braj Ras Madhuri Vol. 1 - Hindi (New Edition)
Nishkam Prem - Hindi
Read Next
Ram or Krishna? Avoid the Grave Sin of Nāmāparādh!
Question - Some naive people who are devotees of Ram do not even want to sing the names of Shri Krishna. Some devotees of Shri Krishna have an aversion to Ram's name. They want a resolution to this issue. Shri Maharaj Ji's Answer - Shri Ram
Daily Devotion - Sep 24, 2025 (English)- Narad Bhakti Darshan - Part 9
The nature of desire is opposed to the nature of Bhakti. We must remain cautious of them. Whenever God descends on earth - * He says to the devotee, "varaṁ brūhi, ask for a boon, my child!" He does not wish to force anything upon anyone. Whatever you ask
Daily Devotion - Sep 21, 2025 (English)- Narad Bhakti Darshan - Part 8
Nārad Bhakti Darshan - Next Part Methods of Kīrtan * Vyās paddhati: Singing kīrtan aloud, narrating or listening to the divine pastimes of God. * Nārad paddhati: Not merely listening silently, but also singing the names, qualities, and pastimes of God aloud, accompanied by musical instruments such as harmonium, tabla, sitar, or
Daily Devotion - Sep 18, 2025 (English)- Narad Bhakti Darshan - Part 7
From Chit Shakti (Parā Shakti): (i) From Sandhini anubhāv - Shri Krishna's name, form, līlā, qualities, abode (Golok), etc. are manifested. (ii) From Samvit anubhāv - The most magnificent nectar of Shri Krishna's beauty (saundarya), sweetness (mādhurya), opulence (aiśvarya), virtuousness (sauśīlya), youthfulness (saukumārya), etc. is created.