स वै नैवरेमे तस्मादेकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत्। स इममेवात्मानं द्वेधाऽपातयत्। तत: पतिश्च पत्नी चाभवताम्।
वो सुप्रीम पॉवर भगवान् प्रलय के बाद अकेले थे। इसलिए उन्होंने अपने को दो बना दिया। तो वे दो नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने अपने को दो बना दिया। अब चाहे कोई अपने को हज़ार बना दे -है तो एक आत्मा।
ये यं राधा यश्च कृष्णो रसाब्धिर्देहे नैक: क्रीडनार्थं द्विधाभूत् (राधातापनीयोपनिषद्)
एक आत्मा है - वो दो शरीर धारण कर लेती है और भक्तों को सुख देने के लिए लीला करती है - क्रीडार्थ: सोऽपि साधूनां परित्राणाय कल्पते।
हरेरर्धतनु राधा राधिकार्धतनु हरि: - श्रीकृष्ण का आधा भाग राधा। राधा का आधा भाग श्रीकृष्ण हैं।
राधा कहती हैं - श्रीकृष्ण कौन हैं, जानते हो?
ममैव पौरुषं रूपं गोपिकाजन मोहनम् - मेरा ही पुरुष वाला रूप श्रीकृष्ण हैं। मैं ही पुरुष बन जाती हूँ। उन्हीं को लोग श्रीकृष्ण कहते हैं।
अब अंतिम निष्कर्ष सुनिए -
द्विश्चैको न भवेत् भेदो दुग्ध धावल्ययोर्यथा -
जैसे दूध और दूध की सफेदी दो नहीं, एक ही हैं। सफ़ेद रंग को दूध से अलग नहीं कर सकते। उसी तरह कस्तूरि और उसकी खुशबू दोनों एक ही है। अग्नि और अग्नि का प्रकाश दो अलग चीज़ नहीं है। प्रकाशकत्व और दाहकत्व अग्नि के ही भीतर रहने वाले दो धर्म हैं। इसी प्रकार राधा-कृष्ण भी एक हैं।
इसलिए छोटे-बड़े का प्रश्न मस्तिष्क में मत लाना - बहुत बड़ा अपराध हो जाएगा। लीला में कुछ भी बोलो - जैसे राधावल्लभ सम्प्रदाय में राधा ही प्रधान हैं, और किसी सम्प्रदाय में श्रीकृष्ण प्रधान हैं, माध्व सम्प्रदाय में महालक्ष्मी प्रधान हैं - ये अपने अपने सम्प्रदाय में ऐसे लोगों का विचार है। लेकिन सिद्धांत में समझे रहो कि एक ही दो बने हैं। इसलिए छोटे बड़े का प्रश्न नहीं है।
कुछ लोग कहते हैं कि राधा का नाम तो भागवत में आया नहीं; ये बाद में लोगों ने राधातत्व को गढ़ लिया है। उन बेचारों ने वेदों शास्त्रों और पुराणों को पूरा-पूरा पढ़ा तो है नहीं - कहीं थोड़ा-सा पढ़ लिया होगा। राधा का नाम वेदों में भी है, पुराणों में भी है - ये भी तो वेदव्यास के लिखे हुए हैं। और महाराज जी का चैलेंज है कि राधा का नाम भागवत में भी है। राधोपनिषद् में राधा के अट्ठाईस पर्यायवाची नाम हैं।
इसलिए राधातत्व वेद में भी है पुराण में भी है, धर्मग्रंथों में भी है और अब तक उपासना में भी चलता आ रहा है। इसलिए कुतर्की और नास्तिक लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना है।
राधातत्व एक अनिर्वचनीय, श्रीकृष्ण की आराध्य और अभिन्नस्वरूप हैं।
उनका अवतार हुआ - जन्म नहीं। जन्म तो मायाबद्ध का होता है
अवतार दो प्रकार के होते हैं - एक तो पुरुष का अवतार - जितने भी तमाम प्रकार के अवतार हैं जैसे मत्स्यावतार, कच्छप अवतार आदि सब पुरुष के अवतार हैं। एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान स्वयम्। श्रीकृष्ण स्वयं भगवान् हैं - वे अवतारी हैं। बाकी सब अवतार हैं। और उन्हीं का दूसरा रूप राधा हैं। इसलिए राधा अवतारिणी हैं। वो किसी की अवतार नहीं हैं। इसलिए वल्लभाचार्य ने कहा कि राधा स्वयं ब्रह्म हैं। और निम्बार्काचार्य ने कहा कि राधा ब्रह्म की ह्लादिनी शक्ति हैं। और शक्ति शक्तिमान से भिन्न भी है अभिन्न भी होती है। गौरांग महाप्रभु ने भी यही कहा - इसी को अचिन्त्यभेदाभेद कहते हैं - यानी दोनों एक हैं और लीला में दोनों दो बन गए।
तो सबके बोलने की भाषा अलग-अलग है। कोई राधा को पराशक्ति कहता है तो कोई महाभाव कहता है तो कोई कहता है ह्लादिनी शक्ति। लेकिन तत्त्वज्ञान के द्वारा ये समझे रहिए कि एक ही के दो नाम हैं दो रूप हैं - लीला के लिए। वास्तव में नहीं।
तो जैसे श्री कृष्ण का शरीर दिव्य है, राधा का शरीर भी अलौकिक है।
अयोनिसंभवा राधा - वे प्रकट हुईं थीं। माँ के पेट में नहीं रहीं।
अयोनिसंभवा देवी वायुगर्भा कलावती। सुषाव मायया वायुं सा तत्राऽऽविर्बभूव सा॥
राधारानी माँ के पेट में नहीं, मन में बैठ गईं और माँ के पेट में योगमाया की शक्ति से हवा भरने लगीं। जैसे आप लोग फुटबॉल में हवा भरते हैं। माँ को यह फीलिंग होती रही की बच्चा आ गया है, पेट बड़ा होता गया, अब आने वाला है, अब आठ महीने हो गए। और बच्चे के पेट में आने पर जो जो लक्षण होते हैं, वो भी राधारानी ने करा दिया ताकि माँ को डाउट न हो कि ये बच्चा नहीं है कुछ और है। माँ को बिल्कुल बच्चे की फीलिंग हो रही है, कि बच्चा हिल रहा है। पर पेट में है कुछ नहीं।
फिर प्रकट हो गईं।
राधारानी अलौकिक हैं। उनका देह, कर्म सब अलौकिक हैं। जब श्रीकृष्ण ही राधा बने हैं तो उसमें प्रश्न ही नहीं।
श्रीकृष्ण की सब बातें - जैसे बिना कान के सुनते हैं, बिना आँखों के देखते हैं-
अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षु : सा श्रीनोत्वकर्ण :| सा वेत्तिविश्वं न च तस्यास्ति वेत्ता - हाथ नहीं हैं लेकिन पकड़ता है, पैर नहीं हैं लेकिन दौड़ता है, आँख नहीं हैं लेकिन देखता है, कान नहीं हैं लेकिन सुनता है। और एक कान है बस उसी से सब देखता भी है, सुनता भी है, सूँघता भी है, रस भी लेता है, जानता भी है। सब काम अलौकिक - यानी हमारे संसार में जो भी होता है, उसका उल्टा। उनके पास योगमाया की शक्ति है जो कर्तुमकर्तुं अन्यथा कर्तुम् समर्थ है। जो चाहे करे, जो चाहे न करे, जो चाहे उल्टा करे। राधारानी भी बिल्कुल इसी प्रकार अलौकिक हैं।
तो वे राधारानी और श्रीकृष्ण एक हैं। लेकिन लीला के क्षेत्र में राधारानी का स्थान विशेष महत्वपूर्ण है। 'महत्वपूर्ण' - बड़ा नहीं - इम्पोर्टेन्ट है। रास में जाने के पहले श्रीकृष्ण की आज्ञा लेंगे और अपना मुकुट उनके चरणों पर रखेंगे।
रसखान को बड़ा डाउट था कि हिन्दू धर्म में स्त्रियाँ तो पति की पैर दबाती हैं। श्री कृष्ण राधिका के चरण क्यों दबाते हैं?
हिन्दू धर्म में तो अगर एक पति अपनी स्त्री के पैर छूने भी लगे तो वो कहेगी - "ऐ क्या कर रहे हो, हमें नरक में ले जाओगे!"
तो जब श्री कृष्ण ने रसखान को दर्शन दिया तो इसी पोज़ में दिया -
देख्यो दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठ्यो पलोटत राधिका पायन - इसी झाँकी में दिया जिसमें श्री कृष्ण राधारानी के चरण दबा रहे हैं ताकि दिमाग का कीड़ा निकल जाए ।
तो श्रीकृष्ण की स्त्री नहीं हैं राधा। उनकी तो 16,108 स्त्री द्वारिका में हैं और एक-एक के दस-दस बच्चे और उन बच्चों के बच्चे - करोड़ों की फैमिली थी और फिर सबको उन्होंने मरवा दिया था।
राधारानी की भक्ति में एक विशेषता यह है कि वे केवल प्यार देती हैं - उनका और कोई काम नहीं।
और श्रीकृष्ण के कई काम हैं -
- सृष्टि करते हैं।
- सर्वव्यापक होते हैं।
- सबके हृदय में बैठकर सबके आइडियाज़ नोट करते हैं और अनंत जन्मों के हिसाब से उसके फल देते हैं।
- बार-बार अवतार लेकर राक्षसों को मारते हैं।
- धर्म का संस्थापन करते हैं।
लेकिन किशोरी जी ये सब कुछ नहीं करतीं। वे केवल प्रेम दान करती हैं। हमारे संसार में भी माँ का बच्चे के लिए अधिक प्यार होता है - बाप का कम होता है।
माँ से अधिक संबंध होता है और माँ जल्दी सुन लेती है। संसारी माँ प्यार में गलत काम भी करवा देती है। माँ का हृदय अधिक सरल होता है। वो बच्चे का कोई दुख देख नहीं सकती, इसलिए बच्चे की डिमांड को जल्दी सुन लेती है और पूरा कर देती है। ये संसारी माँ भी हम देखते हैं। इसी भावना से हमारा विशेष आकर्षण है।
रसिकों की दृष्टि से और भी बड़ी बड़ी बातें हैं जो आगे आपके काम आएँगी। अभी तो आपको इतना समझना है -
- राधा-कृष्ण एक हैं। चाहे केवल श्रीकृष्ण में राधा को समाहित करके उनकी भक्ति करो। या चाहे श्री राधारानी में श्रीकृष्ण को समाहित करके भक्ति करो। या चाहे दोनों को साथ-साथ खड़ा करके भक्ति करो। लेकिन उनको दो नहीं मानना।
- भक्ति का मतलब यही है कि - रोकर पुकारो और कुछ न माँगो।
- केवल हरि और हरिजन से ही मन का अटैचमेंट करो।
इन बातों का ध्यान रखकर भगवान् और राधारानी की उपासना करने से अंतःकरण शुद्ध होगा। तब गुरु कृपा से अंतःकरण दिव्य बनेगा। तब राधारानी आकर आपके सामने बैठेंगी और आपको वैसे ही प्यार देंगी जैसे संसारी माँ अपने बच्चे को देती है और सदा के लिए - सदा पश्यन्ति सूरयः तद्विष्णोः परमं पदं - वेद मंत्र के अनुसार अनंत काल के लिए भगवान् के लोक में आनंद का उपभोग करोगे।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Shri Radha Trayodashi - Hindi
Shri Radharani - Kirti Kumari - Hindi
स वै नैवरेमे तस्मादेकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत्। स इममेवात्मानं द्वेधाऽपातयत्। तत: पतिश्च पत्नी चाभवताम्।
वो सुप्रीम पॉवर भगवान् प्रलय के बाद अकेले थे। इसलिए उन्होंने अपने को दो बना दिया। तो वे दो नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने अपने को दो बना दिया। अब चाहे कोई अपने को हज़ार बना दे -है तो एक आत्मा।
ये यं राधा यश्च कृष्णो रसाब्धिर्देहे नैक: क्रीडनार्थं द्विधाभूत् (राधातापनीयोपनिषद्)
एक आत्मा है - वो दो शरीर धारण कर लेती है और भक्तों को सुख देने के लिए लीला करती है - क्रीडार्थ: सोऽपि साधूनां परित्राणाय कल्पते।
हरेरर्धतनु राधा राधिकार्धतनु हरि: - श्रीकृष्ण का आधा भाग राधा। राधा का आधा भाग श्रीकृष्ण हैं।
राधा कहती हैं - श्रीकृष्ण कौन हैं, जानते हो?
ममैव पौरुषं रूपं गोपिकाजन मोहनम् - मेरा ही पुरुष वाला रूप श्रीकृष्ण हैं। मैं ही पुरुष बन जाती हूँ। उन्हीं को लोग श्रीकृष्ण कहते हैं।
अब अंतिम निष्कर्ष सुनिए -
द्विश्चैको न भवेत् भेदो दुग्ध धावल्ययोर्यथा -
जैसे दूध और दूध की सफेदी दो नहीं, एक ही हैं। सफ़ेद रंग को दूध से अलग नहीं कर सकते। उसी तरह कस्तूरि और उसकी खुशबू दोनों एक ही है। अग्नि और अग्नि का प्रकाश दो अलग चीज़ नहीं है। प्रकाशकत्व और दाहकत्व अग्नि के ही भीतर रहने वाले दो धर्म हैं। इसी प्रकार राधा-कृष्ण भी एक हैं।
इसलिए छोटे-बड़े का प्रश्न मस्तिष्क में मत लाना - बहुत बड़ा अपराध हो जाएगा। लीला में कुछ भी बोलो - जैसे राधावल्लभ सम्प्रदाय में राधा ही प्रधान हैं, और किसी सम्प्रदाय में श्रीकृष्ण प्रधान हैं, माध्व सम्प्रदाय में महालक्ष्मी प्रधान हैं - ये अपने अपने सम्प्रदाय में ऐसे लोगों का विचार है। लेकिन सिद्धांत में समझे रहो कि एक ही दो बने हैं। इसलिए छोटे बड़े का प्रश्न नहीं है।
कुछ लोग कहते हैं कि राधा का नाम तो भागवत में आया नहीं; ये बाद में लोगों ने राधातत्व को गढ़ लिया है। उन बेचारों ने वेदों शास्त्रों और पुराणों को पूरा-पूरा पढ़ा तो है नहीं - कहीं थोड़ा-सा पढ़ लिया होगा। राधा का नाम वेदों में भी है, पुराणों में भी है - ये भी तो वेदव्यास के लिखे हुए हैं। और महाराज जी का चैलेंज है कि राधा का नाम भागवत में भी है। राधोपनिषद् में राधा के अट्ठाईस पर्यायवाची नाम हैं।
इसलिए राधातत्व वेद में भी है पुराण में भी है, धर्मग्रंथों में भी है और अब तक उपासना में भी चलता आ रहा है। इसलिए कुतर्की और नास्तिक लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना है।
राधातत्व एक अनिर्वचनीय, श्रीकृष्ण की आराध्य और अभिन्नस्वरूप हैं।
उनका अवतार हुआ - जन्म नहीं। जन्म तो मायाबद्ध का होता है
अवतार दो प्रकार के होते हैं - एक तो पुरुष का अवतार - जितने भी तमाम प्रकार के अवतार हैं जैसे मत्स्यावतार, कच्छप अवतार आदि सब पुरुष के अवतार हैं। एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान स्वयम्। श्रीकृष्ण स्वयं भगवान् हैं - वे अवतारी हैं। बाकी सब अवतार हैं। और उन्हीं का दूसरा रूप राधा हैं। इसलिए राधा अवतारिणी हैं। वो किसी की अवतार नहीं हैं। इसलिए वल्लभाचार्य ने कहा कि राधा स्वयं ब्रह्म हैं। और निम्बार्काचार्य ने कहा कि राधा ब्रह्म की ह्लादिनी शक्ति हैं। और शक्ति शक्तिमान से भिन्न भी है अभिन्न भी होती है। गौरांग महाप्रभु ने भी यही कहा - इसी को अचिन्त्यभेदाभेद कहते हैं - यानी दोनों एक हैं और लीला में दोनों दो बन गए।
तो सबके बोलने की भाषा अलग-अलग है। कोई राधा को पराशक्ति कहता है तो कोई महाभाव कहता है तो कोई कहता है ह्लादिनी शक्ति। लेकिन तत्त्वज्ञान के द्वारा ये समझे रहिए कि एक ही के दो नाम हैं दो रूप हैं - लीला के लिए। वास्तव में नहीं।
तो जैसे श्री कृष्ण का शरीर दिव्य है, राधा का शरीर भी अलौकिक है।
अयोनिसंभवा राधा - वे प्रकट हुईं थीं। माँ के पेट में नहीं रहीं।
अयोनिसंभवा देवी वायुगर्भा कलावती। सुषाव मायया वायुं सा तत्राऽऽविर्बभूव सा॥
राधारानी माँ के पेट में नहीं, मन में बैठ गईं और माँ के पेट में योगमाया की शक्ति से हवा भरने लगीं। जैसे आप लोग फुटबॉल में हवा भरते हैं। माँ को यह फीलिंग होती रही की बच्चा आ गया है, पेट बड़ा होता गया, अब आने वाला है, अब आठ महीने हो गए। और बच्चे के पेट में आने पर जो जो लक्षण होते हैं, वो भी राधारानी ने करा दिया ताकि माँ को डाउट न हो कि ये बच्चा नहीं है कुछ और है। माँ को बिल्कुल बच्चे की फीलिंग हो रही है, कि बच्चा हिल रहा है। पर पेट में है कुछ नहीं।
फिर प्रकट हो गईं।
राधारानी अलौकिक हैं। उनका देह, कर्म सब अलौकिक हैं। जब श्रीकृष्ण ही राधा बने हैं तो उसमें प्रश्न ही नहीं।
श्रीकृष्ण की सब बातें - जैसे बिना कान के सुनते हैं, बिना आँखों के देखते हैं-
अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षु : सा श्रीनोत्वकर्ण :| सा वेत्तिविश्वं न च तस्यास्ति वेत्ता - हाथ नहीं हैं लेकिन पकड़ता है, पैर नहीं हैं लेकिन दौड़ता है, आँख नहीं हैं लेकिन देखता है, कान नहीं हैं लेकिन सुनता है। और एक कान है बस उसी से सब देखता भी है, सुनता भी है, सूँघता भी है, रस भी लेता है, जानता भी है। सब काम अलौकिक - यानी हमारे संसार में जो भी होता है, उसका उल्टा। उनके पास योगमाया की शक्ति है जो कर्तुमकर्तुं अन्यथा कर्तुम् समर्थ है। जो चाहे करे, जो चाहे न करे, जो चाहे उल्टा करे। राधारानी भी बिल्कुल इसी प्रकार अलौकिक हैं।
तो वे राधारानी और श्रीकृष्ण एक हैं। लेकिन लीला के क्षेत्र में राधारानी का स्थान विशेष महत्वपूर्ण है। 'महत्वपूर्ण' - बड़ा नहीं - इम्पोर्टेन्ट है। रास में जाने के पहले श्रीकृष्ण की आज्ञा लेंगे और अपना मुकुट उनके चरणों पर रखेंगे।
रसखान को बड़ा डाउट था कि हिन्दू धर्म में स्त्रियाँ तो पति की पैर दबाती हैं। श्री कृष्ण राधिका के चरण क्यों दबाते हैं?
हिन्दू धर्म में तो अगर एक पति अपनी स्त्री के पैर छूने भी लगे तो वो कहेगी - "ऐ क्या कर रहे हो, हमें नरक में ले जाओगे!"
तो जब श्री कृष्ण ने रसखान को दर्शन दिया तो इसी पोज़ में दिया -
देख्यो दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठ्यो पलोटत राधिका पायन - इसी झाँकी में दिया जिसमें श्री कृष्ण राधारानी के चरण दबा रहे हैं ताकि दिमाग का कीड़ा निकल जाए ।
तो श्रीकृष्ण की स्त्री नहीं हैं राधा। उनकी तो 16,108 स्त्री द्वारिका में हैं और एक-एक के दस-दस बच्चे और उन बच्चों के बच्चे - करोड़ों की फैमिली थी और फिर सबको उन्होंने मरवा दिया था।
राधारानी की भक्ति में एक विशेषता यह है कि वे केवल प्यार देती हैं - उनका और कोई काम नहीं।
और श्रीकृष्ण के कई काम हैं -
लेकिन किशोरी जी ये सब कुछ नहीं करतीं। वे केवल प्रेम दान करती हैं। हमारे संसार में भी माँ का बच्चे के लिए अधिक प्यार होता है - बाप का कम होता है।
माँ से अधिक संबंध होता है और माँ जल्दी सुन लेती है। संसारी माँ प्यार में गलत काम भी करवा देती है। माँ का हृदय अधिक सरल होता है। वो बच्चे का कोई दुख देख नहीं सकती, इसलिए बच्चे की डिमांड को जल्दी सुन लेती है और पूरा कर देती है। ये संसारी माँ भी हम देखते हैं। इसी भावना से हमारा विशेष आकर्षण है।
रसिकों की दृष्टि से और भी बड़ी बड़ी बातें हैं जो आगे आपके काम आएँगी। अभी तो आपको इतना समझना है -
इन बातों का ध्यान रखकर भगवान् और राधारानी की उपासना करने से अंतःकरण शुद्ध होगा। तब गुरु कृपा से अंतःकरण दिव्य बनेगा। तब राधारानी आकर आपके सामने बैठेंगी और आपको वैसे ही प्यार देंगी जैसे संसारी माँ अपने बच्चे को देती है और सदा के लिए - सदा पश्यन्ति सूरयः तद्विष्णोः परमं पदं - वेद मंत्र के अनुसार अनंत काल के लिए भगवान् के लोक में आनंद का उपभोग करोगे।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Shri Radha Trayodashi - Hindi
Shri Radharani - Kirti Kumari - Hindi
Read Next
Daily Devotion - Oct 12, 2025 (English)- Internal and External Behavior
God and saints remain pure and correct within, even though their external behavior may sometimes appear flawed. In other words, they seem to perform actions of lust, anger, greed, and so on. Arjun, Hanuman, Prahlad, and others committed acts of killing, yet their minds remained untainted. However, worldly people are
Daily Devotion - Oct 10, 2025 (English)- Karva Chauth Reimagined
Today is the festival of Karva Chauth. Many women observe fasts for the well-being of their husbands, worshipping Shiva and Parvati. Some do it to increase their husband's lifespan. But what should you do? What will you gain from increasing the lifespan of a worldly husband? Food to
Daily Devotion - Oct 04, 2025 (English)- Selfless Love
Every soul in the world is suffering, restless, unfulfilled, and incomplete. In contrast, it desires bliss, peace, and fulfillment. What is the reason for this suffering? Wordly desires. vihāya kāmānya: sarvānpumāṃścarati niḥspṛha:। nirmamo nirahaṃkāra: sa śāṃtimadhigacchati॥ If you give up all worldly desires, you will immediately attain bliss, and suffering
Ram or Krishna? Avoid the Grave Sin of Nāmāparādh!
Question - Some naive people who are devotees of Ram do not even want to sing the names of Shri Krishna. Some devotees of Shri Krishna have an aversion to Ram's name. They want a resolution to this issue. Shri Maharaj Ji's Answer - Shri Ram