राधाष्टमी प्रवचन - भाग 1
आप लोगों को सर्वप्रथम यही आश्चर्य होगा कि राधाष्टमी के दिन महाराज जी राधारानी के संकीर्तन के बदले 'भजो गिरिधर गोविन्द गोपाला' संकीर्तन क्यों करा रहे हैं।
राधारानी को भजो गिरिधर गोविन्द गोपाला इतना प्रिय है जितनी उनकी अपनी आत्मा प्रिय नहीं है। जब राधारानी यहाँ अवतीर्ण हुई थीं, तो आँख बंद करके श्रीकृष्ण का ध्यान करती रहती थी। तो वृषभानु और कीर्ति मैया को बड़ी परेशानी होती थी कि ये कैसी लड़की है, आँख ही नहीं खोलती। तो आचार्यों ने बोला कि श्रीकृष्ण का नाम बोल दिया करो तब आँखें खोल देगी। उनको श्रीकृष्ण का नाम इतना प्रिय है।
एक बार राधा ने अपनी सखी ललिता से कहा था -
एकस्य श्रुतमेव लुम्पति मतिं कृष्णेति नामाक्षरं
सान्द्रोन्मादपरम्परामुपनयत्यन्यस्य वंशीकल:।
एष स्निग्धघनद्युतिर्मनसि मे लग्न: परो वीक्षणात्
कष्टं धिक् पुरुषत्रयेरतिरभून्यन्ये मृतिं श्रेयसीम्॥
एक सखी ने श्यामसुन्दर का चित्र बनाकर किशोरी जी को दिखाया। किशोरी जी उसको देखकर सोचीं, "कितना सुन्दर लड़का है ये!" उसको देखकर वे लट्टू हो गईं - उसे देखती रह गईं।
थोड़ी देर बाद किशोरी जी ने सखी से कहा, "अरी सखी, एक बात बताऊँ? किसी से कहना मत, बदनामी हो जाएगी।
एक दिन एक सखी ने कृष्ण नाम बोला था। जब मैंने सुना, मुझे वो इतना मीठा लगा। मैंने सोचा, "जब यह नाम इतना मीठा है, वो कितना मीठा होगा! काश कि कभी दिखाई पड़ता! मेरे मन का अटैचमेंट उसमें हो गया था और मैं सोचने लगी कि कभी तो दिखाई पड़ेगा तो मैं उसी को अपना प्रियतम बनाऊँगी।"
दूसरे दिन एक मुरली सुनाई पड़ी थी - पता नहीं कहाँ से कौन बजा रहा था। वो मुरली इतनी मधुर थी कि मेरा मन खिंच गया कि "ये इतनी मधुर मुरली बजा रहा है तो ये कैसा होगा! इसी को प्रियतम बनाना चाहिए।"
आज तुमने जो ये चित्र दिखाया है ये इतना सुन्दर लग रहा है कि मन कर रहा है कि इसी को प्रियतम बना लूँ।
तो सखी! तीन तीन लड़कों में मेरी आसक्ति हो गई - मुझे मर जाना चाहिए !
किशोरी जी इतनी भोरी-भारी हैं।
सखी ने कहा, "राधे जू, परेशान न हों, ये तीनों एक ही है।"
तो कृष्ण नाम में से ही किशोरी जी आत्मसमर्पण करती हैं, इसलिए मैंने आज 'गिरिधर गोविन्द गोपाला' कीर्तन कराया है ताकि किशोरी जी प्रसन्न हो जाएँगी तो दो चार वाक्य जो मैं बोलूँगा तो ठीक ठीक बोलूँगा।
राधा कौन हैं - ये जानने के लिए आप लोग उत्सुक होंगे। क्योंकि आप लोग फुल मैड हैं जो आप राधा तत्त्व पर सुनना चाहते हैं।
सनकादिकों ने ब्रह्मा से पूछा था कि राधा कौन हैं।
तो ब्रह्मा ने कहा -
एषा वै सर्वेश्वरी - वे सबके ऊपर शासन करने वाली पॉवर हैं।
महिमास्याः स्वायुर्मानेनापि कालेन वक्तुं न चोत्सहे।
अगर मैं अपनी उमर भर बताऊँ कि वे कौन हैं तो भी नहीं बता सकता। उनकी ऐसी महिमा है।
ब्रह्मा की उमर 310 खरब , 40 अरब वर्ष - अगर इतने दिन तक ब्रह्मा राधारानी के विषय पर बिना खाए पिए सोए बताते रहें, तो भी पूरा पूरा नहीं बता सकते।
वो राधा तत्त्व है। उस पर कोई बताए और कोई सुने - दोनों पागल हैं।
लेकिन कुछ दिग्दर्शन कराना आवश्यक है क्योंकि अगर कुछ भी ज्ञान नहीं होता तो मन का अनुराग कैसे होगा?
श्रीकृष्ण कौन हैं ?
यस्मात्परं नापरमस्ति किंचिद्यस्मान्नणीयो न ज्यायोऽस्ति कश्चित्।
उससे परे कुछ नहीं है
मत्तः परतरं किंचित् नान्यदस्ति इति धनंजय।
यानी एक ही है। मुझसे परे कुछ नहीं है। 'परात्पर:' हैं वे।
तो जब श्रीकृष्ण से परे कुछ है ही नहीं, सब उनके अंडर में हैं - फिर राधा कहाँ से टपक पड़ीं?
एको रुद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्य इमांल्लोकानीशत ईशनीभिः।
सब पर शासन करने वाले - एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म, एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति आदि।
ईशावास्यमिदं सर्वं - भगवान् श्रीकृष्ण से परे कुछ नहीं है। उन्हीं के अंश हैं महाविष्णु - प्रथम पुरुष। फिर उनके अंश हैं द्वितीय पुरुष। फिर उनके अंश हैं तृतीय पुरुष जो आपके हृदय में बैठे हैं और सर्वव्यापक हैं। उनके जितने भी अवतार हैं वे सब श्रीकृष्ण के अंश हैं - उनको स्वांश कहते हैं।
तो प्रश्न ये है - कौन हैं राधा ?
हमारे लोक में भी उनको बड़ा महत्त्व दिया जाता है - सब जय राधेश्याम बोलते हैं - कोई नहीं बोलता जय श्यामराधे। सब पहले राधे बोलते हैं फिर श्याम -
तो कोई न कोई बात होगी।
तो राधा और कृष्ण - इन दोनों में कौन बड़ा है, कौन छोटा है, ये समझना होगा।
पहले राधा शब्द का अर्थ समझ लीजिए।
गुररोश्च हलः सूत्र से राध धातु में कर्म में 'अ' प्रत्यय होता है और करण में 'अ' प्रत्यय होता है। तो राधा शब्द के दो अर्थ हो जाते हैं।
- जब राध धातु से कर्म में ' अ ' प्रत्यय होकर राधा शब्द बनता है तब उसका अर्थ होता है कि राधा आराध्य हैं - किसकी ? सबकी, श्रीकृष्ण की भी। यानी जिनकी आराधना सब करें।
वेद में प्रश्न किया गया -
कस्मात् राधिकां उपासते?
राधा की उपासना क्यों की जाती है ?
इसका उत्तर राधिकोपनिषद् में दिया गया - उपनिषद वेद का उत्तर भाग है - सबसे इम्पोर्टेन्ट -
यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्ध्नि। यस्या अंके विलुण्ठन् कृष्णदेवो गोलोकाख्यं नैव सस्मार धामपदं सांशा कमला शैलपुत्री तां राधिकां शक्तिधात्रीं नमामः॥
अर्थात् जिसकी चरणधूलि को श्रीकृष्ण अपने सिर पर रखते हैं, और जिसकी गोद में लेटकर इतना सुख पाते हैं कि वे अपने गोलोक को भूल जाते हों, महालक्ष्मी की कौन कहें। यानी श्रीकृष्ण की आराध्य हैं।
वे राधा हैं।
कृष्ण ह वै हरिः परमो देवः। षड्विधैश्वर्यपरिपूर्णो भगवान् गोपीगोपसेव्यो वृन्दाराधितो वृन्दावनाधिनाथः।
स एक एवेश्वर तस्य ह वै द्वेतनुर्नारायणोऽखिल ब्रह्माण्डाधिपतिरेकोंश: प्रकृतेप्राचीनो नित्यः तस्य शक्तयस्त्वनेकधा।
ह्लादिनीसंधिनी ज्ञानेच्छा क्रियाद्याः। तास्वाह्लादिनी वरीयसी परमान्तरङ्गभूता कृष्णेन आराध्यते इति राधा ।
जिसकी श्रीकृष्ण आराधना करें, उस तत्त्व का नाम राधा है।
श्रीकृष्ण की बहुत सी शक्तियाँ हैं -
- उनमे सबसे इम्पोर्टेन्ट और बड़ी शक्ति हैं ह्लादिनी - ये राधा हैं।
- दूसरी शक्ति है सन्धिनी - ये श्रीकृष्ण के माता-पिता, उनका धाम आदि।
- ज्ञान शक्ति -ये सब जीव हैं।
- इच्छा शक्ति - यह माया है।
- क्रिया शक्ति - ये उनकी दिव्य लीलाएँ हैं।
इसके अतिरिक्त भी श्रीकृष्ण की अनंत शक्तियाँ हैं - श्रीकृष्णेर अनंत शक्ति - उनकी कोई गिनती नहीं कर सकता।
उन सब शक्तियों पर शासन करने वाली शक्ति ह्लादिनी शक्ति है।
ह्लादिनी शक्ति का भी सार भूत तत्त्व है प्रेम शक्ति।
प्रेम शक्ति में भी एक से एक उच्च स्तर हैं - स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव फिर महाभाव भक्ति। महाभाव भक्ति अंतिम शक्ति है। ये ह्लादिनी शक्ति के स्तर हैं महाभाव तक।
महाभाव भी दो प्रकार का होता है - रूढ़ महाभाव, अधिरूढ़ महाभाव। इन दोनों में अधिरूढ़ महाभाव श्रेष्ठ होता है।
अधिरूढ़ महाभाव भी दो प्रकार का होता है - मादन और मोदन। ये दोनों मिलन के स्वरूप हैं। और मोदन भी विरह में मोहन महाभाव बन जाता है।
मोहन भी दो प्रकार का होता है। चित्रजल्प। चित्रजल्प भी दस प्रकार का होता है संजल्प, प्रतिजल्प, अभिजल्प, उज्जल्प, प्रजल्प, परिजल्प आदि - इसको दिव्योन्माद कहते हैं। ये मोहन वहाँ तक जाता है। इस रस को श्रीकृष्ण और राधारानी दोनों लेते हैं।
लेकिन इसके आगे एक और स्तर है। उसको मादन कहते हैं - ये केवल राधारानी का स्तर है। वहाँ श्रीकृष्ण भी नहीं पहुँच सकते।
यानी राधारानी का स्थान मादन हैं और श्रीकृष्ण का स्थान मोहन है।
यानी राधारानी श्रीकृष्ण की आराध्या हैं - राधैवाराध्यते मया - श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि मैं राधा की आराधना करता हूँ।
- अब करण में अ प्रत्यय करने का स्वरूप समझिए -
राधा श्रीकृष्ण की भक्त हैं। आराधिका हैं - यानी आराधना करने वाली।
जब महारास में श्रीकृष्ण राधारानी को लेकर अलक्षित हो गए, तो सारी गोपियाँ बेबल होकर आपस में कहती हैं -
अनयाराधितो नूनं भगवान्हरिरीश्वर:I यन्नोविहाय गोविन्द: प्रीतोयामनयद्रह॥
इस गोपी ने सबसे अधिक आराधना की है। श्रीकृष्ण के लिए तीन शब्द कहे गए हैं - हरि, भगवान्, ईश्वर। श्रीकृष्ण की इतने आराधना करने वाले लोग हैं - उन सब में ये सर्वश्रेष्ठ आराधिका हैं, जिस गोपी को लेकर भगवान् अलक्षित हो गए।
नोविहाय - हम सब को छोड़ दिया।
ऐसे ही नहीं उसको लेकर गए - उसकी आराधना सबसे अधिक होगी, तभी तो उसको लेकर गए।
ये श्रीकृष्ण की आराधिका हैं
तो वे आराध्य हैं या आराधिका हैं?
श्रीकृष्ण राधा की आराध्य हैं या राधा श्रीकृष्ण की आराध्य हैं ? दोनों बातें शास्त्रों-वेदों कहते हैं।
श्री महाराज जी इसका समाधान कर रहे हैं -
आत्मानं द्विधा करोत् अर्धेन स्त्री अर्धेन पुरुष: (वेद)
भगवान् ने अपने को दो कर दिया। आधे से स्वयं और आधे से राधा बन गए। यानी वे दो परसनैलिटी हैं ही नहीं। छोटे-बड़े की बात तो तब आए जब वे दो पर्सनैलिटी हों।
राधाकृष्णयोरेकासनं एका बुद्धि: एकं मन: एकं ज्ञानं एक आत्मा।
एकं पदं एका आकृति: अतो द्वयोर्न भेद: कालमायागुणातीत्वात्॥
यानी वे एक ही आत्मा हैं - और वो दो बन गए ।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Shri Radha Trayodashi - Hindi
Shri Radharani - Kirti Kumari - Hindi
राधाष्टमी प्रवचन - भाग 1
आप लोगों को सर्वप्रथम यही आश्चर्य होगा कि राधाष्टमी के दिन महाराज जी राधारानी के संकीर्तन के बदले 'भजो गिरिधर गोविन्द गोपाला' संकीर्तन क्यों करा रहे हैं।
राधारानी को भजो गिरिधर गोविन्द गोपाला इतना प्रिय है जितनी उनकी अपनी आत्मा प्रिय नहीं है। जब राधारानी यहाँ अवतीर्ण हुई थीं, तो आँख बंद करके श्रीकृष्ण का ध्यान करती रहती थी। तो वृषभानु और कीर्ति मैया को बड़ी परेशानी होती थी कि ये कैसी लड़की है, आँख ही नहीं खोलती। तो आचार्यों ने बोला कि श्रीकृष्ण का नाम बोल दिया करो तब आँखें खोल देगी। उनको श्रीकृष्ण का नाम इतना प्रिय है।
एक बार राधा ने अपनी सखी ललिता से कहा था -
एकस्य श्रुतमेव लुम्पति मतिं कृष्णेति नामाक्षरं
सान्द्रोन्मादपरम्परामुपनयत्यन्यस्य वंशीकल:।
एष स्निग्धघनद्युतिर्मनसि मे लग्न: परो वीक्षणात्
कष्टं धिक् पुरुषत्रयेरतिरभून्यन्ये मृतिं श्रेयसीम्॥
एक सखी ने श्यामसुन्दर का चित्र बनाकर किशोरी जी को दिखाया। किशोरी जी उसको देखकर सोचीं, "कितना सुन्दर लड़का है ये!" उसको देखकर वे लट्टू हो गईं - उसे देखती रह गईं।
थोड़ी देर बाद किशोरी जी ने सखी से कहा, "अरी सखी, एक बात बताऊँ? किसी से कहना मत, बदनामी हो जाएगी।
एक दिन एक सखी ने कृष्ण नाम बोला था। जब मैंने सुना, मुझे वो इतना मीठा लगा। मैंने सोचा, "जब यह नाम इतना मीठा है, वो कितना मीठा होगा! काश कि कभी दिखाई पड़ता! मेरे मन का अटैचमेंट उसमें हो गया था और मैं सोचने लगी कि कभी तो दिखाई पड़ेगा तो मैं उसी को अपना प्रियतम बनाऊँगी।"
दूसरे दिन एक मुरली सुनाई पड़ी थी - पता नहीं कहाँ से कौन बजा रहा था। वो मुरली इतनी मधुर थी कि मेरा मन खिंच गया कि "ये इतनी मधुर मुरली बजा रहा है तो ये कैसा होगा! इसी को प्रियतम बनाना चाहिए।"
आज तुमने जो ये चित्र दिखाया है ये इतना सुन्दर लग रहा है कि मन कर रहा है कि इसी को प्रियतम बना लूँ।
तो सखी! तीन तीन लड़कों में मेरी आसक्ति हो गई - मुझे मर जाना चाहिए !
किशोरी जी इतनी भोरी-भारी हैं।
सखी ने कहा, "राधे जू, परेशान न हों, ये तीनों एक ही है।"
तो कृष्ण नाम में से ही किशोरी जी आत्मसमर्पण करती हैं, इसलिए मैंने आज 'गिरिधर गोविन्द गोपाला' कीर्तन कराया है ताकि किशोरी जी प्रसन्न हो जाएँगी तो दो चार वाक्य जो मैं बोलूँगा तो ठीक ठीक बोलूँगा।
राधा कौन हैं - ये जानने के लिए आप लोग उत्सुक होंगे। क्योंकि आप लोग फुल मैड हैं जो आप राधा तत्त्व पर सुनना चाहते हैं।
सनकादिकों ने ब्रह्मा से पूछा था कि राधा कौन हैं।
तो ब्रह्मा ने कहा -
एषा वै सर्वेश्वरी - वे सबके ऊपर शासन करने वाली पॉवर हैं।
महिमास्याः स्वायुर्मानेनापि कालेन वक्तुं न चोत्सहे।
अगर मैं अपनी उमर भर बताऊँ कि वे कौन हैं तो भी नहीं बता सकता। उनकी ऐसी महिमा है।
ब्रह्मा की उमर 310 खरब , 40 अरब वर्ष - अगर इतने दिन तक ब्रह्मा राधारानी के विषय पर बिना खाए पिए सोए बताते रहें, तो भी पूरा पूरा नहीं बता सकते।
वो राधा तत्त्व है। उस पर कोई बताए और कोई सुने - दोनों पागल हैं।
लेकिन कुछ दिग्दर्शन कराना आवश्यक है क्योंकि अगर कुछ भी ज्ञान नहीं होता तो मन का अनुराग कैसे होगा?
श्रीकृष्ण कौन हैं ?
यस्मात्परं नापरमस्ति किंचिद्यस्मान्नणीयो न ज्यायोऽस्ति कश्चित्।
उससे परे कुछ नहीं है
मत्तः परतरं किंचित् नान्यदस्ति इति धनंजय।
यानी एक ही है। मुझसे परे कुछ नहीं है। 'परात्पर:' हैं वे।
तो जब श्रीकृष्ण से परे कुछ है ही नहीं, सब उनके अंडर में हैं - फिर राधा कहाँ से टपक पड़ीं?
एको रुद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्य इमांल्लोकानीशत ईशनीभिः।
सब पर शासन करने वाले - एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म, एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति आदि।
ईशावास्यमिदं सर्वं - भगवान् श्रीकृष्ण से परे कुछ नहीं है। उन्हीं के अंश हैं महाविष्णु - प्रथम पुरुष। फिर उनके अंश हैं द्वितीय पुरुष। फिर उनके अंश हैं तृतीय पुरुष जो आपके हृदय में बैठे हैं और सर्वव्यापक हैं। उनके जितने भी अवतार हैं वे सब श्रीकृष्ण के अंश हैं - उनको स्वांश कहते हैं।
तो प्रश्न ये है - कौन हैं राधा ?
हमारे लोक में भी उनको बड़ा महत्त्व दिया जाता है - सब जय राधेश्याम बोलते हैं - कोई नहीं बोलता जय श्यामराधे। सब पहले राधे बोलते हैं फिर श्याम -
तो कोई न कोई बात होगी।
तो राधा और कृष्ण - इन दोनों में कौन बड़ा है, कौन छोटा है, ये समझना होगा।
पहले राधा शब्द का अर्थ समझ लीजिए।
गुररोश्च हलः सूत्र से राध धातु में कर्म में 'अ' प्रत्यय होता है और करण में 'अ' प्रत्यय होता है। तो राधा शब्द के दो अर्थ हो जाते हैं।
वेद में प्रश्न किया गया -
कस्मात् राधिकां उपासते?
राधा की उपासना क्यों की जाती है ?
इसका उत्तर राधिकोपनिषद् में दिया गया - उपनिषद वेद का उत्तर भाग है - सबसे इम्पोर्टेन्ट -
यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्ध्नि। यस्या अंके विलुण्ठन् कृष्णदेवो गोलोकाख्यं नैव सस्मार धामपदं सांशा कमला शैलपुत्री तां राधिकां शक्तिधात्रीं नमामः॥
अर्थात् जिसकी चरणधूलि को श्रीकृष्ण अपने सिर पर रखते हैं, और जिसकी गोद में लेटकर इतना सुख पाते हैं कि वे अपने गोलोक को भूल जाते हों, महालक्ष्मी की कौन कहें। यानी श्रीकृष्ण की आराध्य हैं।
वे राधा हैं।
कृष्ण ह वै हरिः परमो देवः। षड्विधैश्वर्यपरिपूर्णो भगवान् गोपीगोपसेव्यो वृन्दाराधितो वृन्दावनाधिनाथः।
स एक एवेश्वर तस्य ह वै द्वेतनुर्नारायणोऽखिल ब्रह्माण्डाधिपतिरेकोंश: प्रकृतेप्राचीनो नित्यः तस्य शक्तयस्त्वनेकधा।
ह्लादिनीसंधिनी ज्ञानेच्छा क्रियाद्याः। तास्वाह्लादिनी वरीयसी परमान्तरङ्गभूता कृष्णेन आराध्यते इति राधा ।
जिसकी श्रीकृष्ण आराधना करें, उस तत्त्व का नाम राधा है।
श्रीकृष्ण की बहुत सी शक्तियाँ हैं -
इसके अतिरिक्त भी श्रीकृष्ण की अनंत शक्तियाँ हैं - श्रीकृष्णेर अनंत शक्ति - उनकी कोई गिनती नहीं कर सकता।
उन सब शक्तियों पर शासन करने वाली शक्ति ह्लादिनी शक्ति है।
ह्लादिनी शक्ति का भी सार भूत तत्त्व है प्रेम शक्ति।
प्रेम शक्ति में भी एक से एक उच्च स्तर हैं - स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव फिर महाभाव भक्ति। महाभाव भक्ति अंतिम शक्ति है। ये ह्लादिनी शक्ति के स्तर हैं महाभाव तक।
महाभाव भी दो प्रकार का होता है - रूढ़ महाभाव, अधिरूढ़ महाभाव। इन दोनों में अधिरूढ़ महाभाव श्रेष्ठ होता है।
अधिरूढ़ महाभाव भी दो प्रकार का होता है - मादन और मोदन। ये दोनों मिलन के स्वरूप हैं। और मोदन भी विरह में मोहन महाभाव बन जाता है।
मोहन भी दो प्रकार का होता है। चित्रजल्प। चित्रजल्प भी दस प्रकार का होता है संजल्प, प्रतिजल्प, अभिजल्प, उज्जल्प, प्रजल्प, परिजल्प आदि - इसको दिव्योन्माद कहते हैं। ये मोहन वहाँ तक जाता है। इस रस को श्रीकृष्ण और राधारानी दोनों लेते हैं।
लेकिन इसके आगे एक और स्तर है। उसको मादन कहते हैं - ये केवल राधारानी का स्तर है। वहाँ श्रीकृष्ण भी नहीं पहुँच सकते।
यानी राधारानी का स्थान मादन हैं और श्रीकृष्ण का स्थान मोहन है।
यानी राधारानी श्रीकृष्ण की आराध्या हैं - राधैवाराध्यते मया - श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि मैं राधा की आराधना करता हूँ।
राधा श्रीकृष्ण की भक्त हैं। आराधिका हैं - यानी आराधना करने वाली।
जब महारास में श्रीकृष्ण राधारानी को लेकर अलक्षित हो गए, तो सारी गोपियाँ बेबल होकर आपस में कहती हैं -
अनयाराधितो नूनं भगवान्हरिरीश्वर:I यन्नोविहाय गोविन्द: प्रीतोयामनयद्रह॥
इस गोपी ने सबसे अधिक आराधना की है। श्रीकृष्ण के लिए तीन शब्द कहे गए हैं - हरि, भगवान्, ईश्वर। श्रीकृष्ण की इतने आराधना करने वाले लोग हैं - उन सब में ये सर्वश्रेष्ठ आराधिका हैं, जिस गोपी को लेकर भगवान् अलक्षित हो गए।
नोविहाय - हम सब को छोड़ दिया।
ऐसे ही नहीं उसको लेकर गए - उसकी आराधना सबसे अधिक होगी, तभी तो उसको लेकर गए।
ये श्रीकृष्ण की आराधिका हैं
तो वे आराध्य हैं या आराधिका हैं?
श्रीकृष्ण राधा की आराध्य हैं या राधा श्रीकृष्ण की आराध्य हैं ? दोनों बातें शास्त्रों-वेदों कहते हैं।
श्री महाराज जी इसका समाधान कर रहे हैं -
आत्मानं द्विधा करोत् अर्धेन स्त्री अर्धेन पुरुष: (वेद)
भगवान् ने अपने को दो कर दिया। आधे से स्वयं और आधे से राधा बन गए। यानी वे दो परसनैलिटी हैं ही नहीं। छोटे-बड़े की बात तो तब आए जब वे दो पर्सनैलिटी हों।
राधाकृष्णयोरेकासनं एका बुद्धि: एकं मन: एकं ज्ञानं एक आत्मा।
एकं पदं एका आकृति: अतो द्वयोर्न भेद: कालमायागुणातीत्वात्॥
यानी वे एक ही आत्मा हैं - और वो दो बन गए ।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Shri Radha Trayodashi - Hindi
Shri Radharani - Kirti Kumari - Hindi
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