यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि ईश्वरीय जगत में प्रत्येक कर्म का कर्त्ता मन है। संसारी कर्म तो बिना मन के भी हो सकता है और संसार उसे कर्म मा
यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि ईश्वरीय जगत में प्रत्येक कर्म का कर्त्ता मन है। संसारी कर्म तो बिना मन के भी हो सकता है और संसार उसे कर्म मान लेता है। लेकिन भगवान् के कर्म एक्टिंग में नहीं चलेंगे क्योंकि वे आपके अंदर बैठकर नोट करते हैं कि मन का सम्बन्ध कितने पर्सेंट है चाहे करोड़ों नाम, जप, दान, यज्ञ, तप, व्रत कुछ भी कर लें।
दीनता की इतनी सुंदर प्रार्थना है जो शास्त्रों वेदों का सार है। उसके एक लाइन पर भी कभी विचार किया? इसकी एक-एक लाइन इतनी गंभीर भावना वाली है। लेकिन इसको इधर-उधर देखते हुए केवल मुँह से इतना रूखा बोलते हो। जब उसको सुनकर मुझे ही इतना खराब लगता है, तो भगवान् को कैसे लगता होगा? इस प्रार्थना की गंभीरता पर विचार करो और मन से भावना बनाकर बोलो (तद् जप: तदर्थभावनं)। जब पाँच मिनट आपने प्रार्थना और आरती में दिया, उसको सही सही दो। पद गाते वक्त भावना बनाकर गाओ। मन को धिक्कारो कि क्या बोल रहा है और क्या सोच रहा है। मन का कहा मत मानो। मन पापी है, उसे फील करो।
अब आप हरि गुरु कृपा से समझ गये हैं कि लक्ष्य को पाने के लिये क्या करना है। अब मन का गुलाम मत बनो। कल का दिन मिले न मिले। इसलिये पहले मन को सामने लाओ फिर प्रार्थना, आरती, कीर्तन कुछ भी करो, या कुछ न करो - केवल मन से चिंतन करो, लेकिन बिना मन के कोई भी इन्द्रिय की साधना, साधना नहीं मानी जायेगी - इसको एक्टिंग कहते हैं । बड़े-बड़े पापात्मा जो राम नहीं कह सकते थे, बस प्रतिज्ञा करने से महापुरुष बन गये। इसलिए सावधान होकर अभ्यास करो - प्रतिज्ञा कर लो कि मन को पहले लायेंगे, लापरवाही नहीं करेंगे। 10 दिन में देखो कहां पहुँच जाओगे।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो दैनिक अभ्यास में सहायक होंगी :
There once were two Prajapatis named Vrishni and Sutapa. They performed penance for twelve thousand celestial years. A day of the celestial Gods is six months long, and their night is six months long. In twenty-four hours of the celestial Gods, a year passes for us - our 360 days
There are three extremely rare things in this world -
1. Attaining a human body after thousands of births.
janmāntarasahasraistu manuṣyatvaṃ hi durlabham -
Why is it so rare? It is the dirtiest among all life forms. After death, the bodies of other creatures are put to some use, no
Every person in this world is unhappy, incomplete, and yearning for bliss. When someone becomes weary of the world and finds nothing fulfilling, they turn to God and say:
"My Guru has taught me not to ask God for worldly enjoyment (bhukti) nor liberation (mukti)."
Maya's
यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि ईश्वरीय जगत में प्रत्येक कर्म का कर्त्ता मन है। संसारी कर्म तो बिना मन के भी हो सकता है और संसार उसे कर्म मान लेता है। लेकिन भगवान् के कर्म एक्टिंग में नहीं चलेंगे क्योंकि वे आपके अंदर बैठकर नोट करते हैं कि मन का सम्बन्ध कितने पर्सेंट है चाहे करोड़ों नाम, जप, दान, यज्ञ, तप, व्रत कुछ भी कर लें।
दीनता की इतनी सुंदर प्रार्थना है जो शास्त्रों वेदों का सार है। उसके एक लाइन पर भी कभी विचार किया? इसकी एक-एक लाइन इतनी गंभीर भावना वाली है। लेकिन इसको इधर-उधर देखते हुए केवल मुँह से इतना रूखा बोलते हो। जब उसको सुनकर मुझे ही इतना खराब लगता है, तो भगवान् को कैसे लगता होगा? इस प्रार्थना की गंभीरता पर विचार करो और मन से भावना बनाकर बोलो (तद् जप: तदर्थभावनं)। जब पाँच मिनट आपने प्रार्थना और आरती में दिया, उसको सही सही दो। पद गाते वक्त भावना बनाकर गाओ। मन को धिक्कारो कि क्या बोल रहा है और क्या सोच रहा है। मन का कहा मत मानो। मन पापी है, उसे फील करो।
अब आप हरि गुरु कृपा से समझ गये हैं कि लक्ष्य को पाने के लिये क्या करना है। अब मन का गुलाम मत बनो। कल का दिन मिले न मिले। इसलिये पहले मन को सामने लाओ फिर प्रार्थना, आरती, कीर्तन कुछ भी करो, या कुछ न करो - केवल मन से चिंतन करो, लेकिन बिना मन के कोई भी इन्द्रिय की साधना, साधना नहीं मानी जायेगी - इसको एक्टिंग कहते हैं । बड़े-बड़े पापात्मा जो राम नहीं कह सकते थे, बस प्रतिज्ञा करने से महापुरुष बन गये। इसलिए सावधान होकर अभ्यास करो - प्रतिज्ञा कर लो कि मन को पहले लायेंगे, लापरवाही नहीं करेंगे। 10 दिन में देखो कहां पहुँच जाओगे।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो दैनिक अभ्यास में सहायक होंगी :
दैनिक प्रार्थना
दैनिक रूपध्यान - इ-बुक
दैनिक प्रार्थना - इ-बुक
हरि गुरु स्मरण - दैनिक चिंतन
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