भगवान् राम सभी प्राणियों के पिता हैं और माता सीता सभी की माता हैं। लोग अक्सर सोचते हैं कि भगवान् राम या माता सीता में से कौन अधिक दयालु है। निखिलदर्शन समन्वयाचार्य जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज अपने प्रवचनों में यह बार-बार बताते हैं कि भगवान् राम और माता सीता वास्तव में एक ही हैं, फिर भी माता सीता अधिक दयालु हैं। भगवान् राम के समर्थकों ने कहा किसी पर इल्ज़ाम लगाना आसान होता है, सबूत दो तब मानेंगे। धर्मग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं।
प्रस्तुत प्रसंग राम अवतार का है जब भगवान् राम और माता सीता वनवास के समय चित्रकूट में पर्ण कुटी बनाकर रहते थे। एक बार भगवान् राम माता सीता की गोद में सिर रख कर विश्राम कर रहे थे। तब जयन्त नामक पक्षी ने माता सीता के चरण में चोंच मार दी। भगवान् राम ने क्रुद्ध होकर उस धृष्ट पक्षी पर सुदर्शन चक्र छोड़ दिया। जयन्त सहायता के लिए उड़ता-उड़ता ब्रह्मा, विष्णु और शंकर जैसे ब्रह्मांडनायकों के पास गया, लेकिन सब ने परब्रह्म के सुदर्शन चक्र से रक्षा करने में असमर्थता व्यक्त की ।
अंत में, जयन्त भगवान् राम के पास लौट आया और क्षमा माँगी । भगवान् राम जयन्त को दंड देने को तत्पर थे, लेकिन तभी माता सीता ने जयन्त का पक्ष लिया। उन्होंने भगवान् राम से एक ऐसे जीव का नाम बताने को कहा जो माया के वश में है और जिसने अभी तक एक भी पाप नहीं किया है। मायाबद्ध जीव चाहे कम पाप करे चाहे अधिक पाप करे लेकिन पाप तो करेगा ही क्योंकि पाप की जननी माया उसके ऊपर हावी है। माता सीता का तर्क सुनकर भगवान् राम शांत हो गये और उन्होंने जयन्त को क्षमा कर दिया।
माता सीता ने जयन्त का पक्ष लिया
माता सीता के कृपामयी विरद का एक और उदाहरण प्रस्तुत है । राक्षस राजा, रावण ने उनका अपहरण कर लिया था और रावण ने सीता जी को लंका में अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा था । त्रिजटा आदि राक्षसियों का पहरा था । वे राक्षसियाँ डरा धमका कर माता सीता को रावण की आज्ञा मानने को विवश करना चाहती थीं ।
इस बीच भगवान् राम और उनकी सेना माता सीता की खोज कर रहे थे । भगवान् राम के परम भक्त हनुमान जी ने माता सीता का पता लगाया और उन्हें श्री रामचंद जी का संदेश दिया । तत्पश्चात हनुमान जी ने माता सीता को इतना कष्ट देने वाली राक्षसियों को दंड देना चाहा । किन्तु कृपामयी सीता मैया ने उन्हें रोका, क्योंकि वे उन राक्षसियों को क्षमा कर चुकीं थीं ।
कृपामयी सीता मैया उन राक्षसियों को क्षमा कर दिया
ऐसी ही एक और कथा माता सीता की अतुल्य कृपा के गुण को दर्शाती है।
शूर्पणखा नाम की एक राक्षसी थी जो भगवान् राम की सुंदरता पर मोहित हो गई थी। क्योंकि श्री राम विवाहित एवं मर्यादा पुरुषोत्तम थे, उन्होंने शूर्पणखा से विवाह करने से इंकार कर दिया। इस पर शूर्पणखा क्रोधित हो गई और वह माता सीता को खाने के लिए दौड़ी । उसका मानना था कि माता सीता के निधन के उपरांत भगवान् राम के पास उससे विवाह न करने का कोई कारण नहीं बचेगा ।
माता सीता ने शूर्पणखा को क्षमा कर दिया
इतने जघन्य अपराध के बाद भी माता सीता ने शूर्पणखा को क्षमा कर दिया । पुनः कृष्णावतार में माता सीता (श्री राधा) ने शूपर्णखा को भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेयसी बनने का अधिकार दे दिया ।
अतः एक ही स्वरूप होते हुए भी, माता सीता प्रभु श्री राम से कहीं अधिक दयालु एवं कृपालु हैं। संसार में भी माता का हृदय पिता से अधिक कोमल तथा क्षमाशील होता है । शास्त्र भी कहते हैं कि माँ का स्थान पिता से ऊँचा होता है ।
अधिकतर श्लोकों में भी माँ को पहले नमन किया गया है, पश्चात पिता का नाम लेते हैं जैसे सीता-राम, राधा-कृष्ण कहते हैं । और ब्रज की परंपरा अनुसार जन-साधारण भी राधे-राधे कह कर एक दूसरे का अभिनन्दन करते हैं ।
भगवान् के सभी स्वरूपों में समस्त शक्तियाँ विद्यमान है । भगवान् के रूपों में भेदभाव करना नामापराध की श्रेणी में आता है । सभी रूपों का सम्मान करें और उपासना के लिए एक इष्ट चुनें ।
अपने चुने हुए इष्ट में भगवान् के सभी स्वरूपों को अध्यस्त करके केवल उनकी ही उपासना करने से मन में एक रूप बैठ जाएगा । जिससे रूपध्यान में आपको बहुत सहायता मिलेगी । अपने इष्टदेव और गुरु की अनन्य भाव से निष्काम उपासना करना ही जीव का परम-चरम लक्ष्य है।
Jagadguru and Jagadguruttam–Significance and relevance in current times Before times we delve into understanding the significance of these terms, let us do a quick recap of our preceding discussions. Until now, we explored the cosmic dynamics of three eternal entities: Jeeva(individual souls), Brahma (God), and Maya (illusion), where
Continuing our quest to identify a genuine Saint or Guru<https://www.deardevotees.com/How to Recognise a Genuine Guru, we previously discussed how a true Saint would never bestow material wealth and refrains from interfering in one’s destiny. Let's explore additional indicators:
Refrains from Performing
After acknowledging the indispensability of a Guru https://www.deardevotees.com/guru-a-beacon-illuminating-the-path-to-transcendence/ in our spiritual journey, the next pressing question is how to recognise a genuine saint amidst the multitude of imposters masquerading as gurus.
A straightforward definition of a true Saint is someone who knows God. Knowing has two
As we delve deeper into the pursuit of transcendence, we arrive at a crucial juncture: the pivotal role of the Guru in guiding us toward divine realization. In our quest to attain the ultimate truth, the Guru emerges as the indispensable bridge between the individual soul (jeeva) and the divine
भगवान् राम सभी प्राणियों के पिता हैं और माता सीता सभी की माता हैं। लोग अक्सर सोचते हैं कि भगवान् राम या माता सीता में से कौन अधिक दयालु है। निखिलदर्शन समन्वयाचार्य जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज अपने प्रवचनों में यह बार-बार बताते हैं कि भगवान् राम और माता सीता वास्तव में एक ही हैं, फिर भी माता सीता अधिक दयालु हैं। भगवान् राम के समर्थकों ने कहा किसी पर इल्ज़ाम लगाना आसान होता है, सबूत दो तब मानेंगे। धर्मग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं।
प्रस्तुत प्रसंग राम अवतार का है जब भगवान् राम और माता सीता वनवास के समय चित्रकूट में पर्ण कुटी बनाकर रहते थे। एक बार भगवान् राम माता सीता की गोद में सिर रख कर विश्राम कर रहे थे। तब जयन्त नामक पक्षी ने माता सीता के चरण में चोंच मार दी। भगवान् राम ने क्रुद्ध होकर उस धृष्ट पक्षी पर सुदर्शन चक्र छोड़ दिया। जयन्त सहायता के लिए उड़ता-उड़ता ब्रह्मा, विष्णु और शंकर जैसे ब्रह्मांडनायकों के पास गया, लेकिन सब ने परब्रह्म के सुदर्शन चक्र से रक्षा करने में असमर्थता व्यक्त की ।
अंत में, जयन्त भगवान् राम के पास लौट आया और क्षमा माँगी । भगवान् राम जयन्त को दंड देने को तत्पर थे, लेकिन तभी माता सीता ने जयन्त का पक्ष लिया। उन्होंने भगवान् राम से एक ऐसे जीव का नाम बताने को कहा जो माया के वश में है और जिसने अभी तक एक भी पाप नहीं किया है। मायाबद्ध जीव चाहे कम पाप करे चाहे अधिक पाप करे लेकिन पाप तो करेगा ही क्योंकि पाप की जननी माया उसके ऊपर हावी है। माता सीता का तर्क सुनकर भगवान् राम शांत हो गये और उन्होंने जयन्त को क्षमा कर दिया।
माता सीता के कृपामयी विरद का एक और उदाहरण प्रस्तुत है । राक्षस राजा, रावण ने उनका अपहरण कर लिया था और रावण ने सीता जी को लंका में अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा था । त्रिजटा आदि राक्षसियों का पहरा था । वे राक्षसियाँ डरा धमका कर माता सीता को रावण की आज्ञा मानने को विवश करना चाहती थीं ।
इस बीच भगवान् राम और उनकी सेना माता सीता की खोज कर रहे थे । भगवान् राम के परम भक्त हनुमान जी ने माता सीता का पता लगाया और उन्हें श्री रामचंद जी का संदेश दिया । तत्पश्चात हनुमान जी ने माता सीता को इतना कष्ट देने वाली राक्षसियों को दंड देना चाहा । किन्तु कृपामयी सीता मैया ने उन्हें रोका, क्योंकि वे उन राक्षसियों को क्षमा कर चुकीं थीं ।
ऐसी ही एक और कथा माता सीता की अतुल्य कृपा के गुण को दर्शाती है।
शूर्पणखा नाम की एक राक्षसी थी जो भगवान् राम की सुंदरता पर मोहित हो गई थी। क्योंकि श्री राम विवाहित एवं मर्यादा पुरुषोत्तम थे, उन्होंने शूर्पणखा से विवाह करने से इंकार कर दिया। इस पर शूर्पणखा क्रोधित हो गई और वह माता सीता को खाने के लिए दौड़ी । उसका मानना था कि माता सीता के निधन के उपरांत भगवान् राम के पास उससे विवाह न करने का कोई कारण नहीं बचेगा ।
इतने जघन्य अपराध के बाद भी माता सीता ने शूर्पणखा को क्षमा कर दिया । पुनः कृष्णावतार में माता सीता (श्री राधा) ने शूपर्णखा को भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेयसी बनने का अधिकार दे दिया ।
अतः एक ही स्वरूप होते हुए भी, माता सीता प्रभु श्री राम से कहीं अधिक दयालु एवं कृपालु हैं। संसार में भी माता का हृदय पिता से अधिक कोमल तथा क्षमाशील होता है । शास्त्र भी कहते हैं कि माँ का स्थान पिता से ऊँचा होता है ।
अधिकतर श्लोकों में भी माँ को पहले नमन किया गया है, पश्चात पिता का नाम लेते हैं जैसे सीता-राम, राधा-कृष्ण कहते हैं । और ब्रज की परंपरा अनुसार जन-साधारण भी राधे-राधे कह कर एक दूसरे का अभिनन्दन करते हैं ।
भगवान् के सभी स्वरूपों में समस्त शक्तियाँ विद्यमान है । भगवान् के रूपों में भेदभाव करना नामापराध की श्रेणी में आता है । सभी रूपों का सम्मान करें और उपासना के लिए एक इष्ट चुनें ।
अपने चुने हुए इष्ट में भगवान् के सभी स्वरूपों को अध्यस्त करके केवल उनकी ही उपासना करने से मन में एक रूप बैठ जाएगा । जिससे रूपध्यान में आपको बहुत सहायता मिलेगी । अपने इष्टदेव और गुरु की अनन्य भाव से निष्काम उपासना करना ही जीव का परम-चरम लक्ष्य है।
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Jagadguru and Jagadguruttam – Significance and relevance in current times
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How to Recognise a Genuine Guru? – Part 2
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Guru – A Beacon, Illuminating the Path to Transcendence
As we delve deeper into the pursuit of transcendence, we arrive at a crucial juncture: the pivotal role of the Guru in guiding us toward divine realization. In our quest to attain the ultimate truth, the Guru emerges as the indispensable bridge between the individual soul (jeeva) and the divine