कोई अपमानित करे तो क्या करें?
सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता परो ददातीति कुबुद्धिरेषा।
संसार में न सुख है न दुःख है। ये सोचना हमारी नासमझी है कि अमुक व्यक्ति से सुख मिलेगा और अमुक व्यक्ति से दुःख मिलेगा। अगर हम कहीं सुख न मानें तो दुःख भी अपने आप समाप्त हो जायेगा। वैराग्य का मतलब है कि हम यह डिसीज़न ले लें कि संसार में सुख नहीं है।
ज्ञस्यानंदमयं जगत् (वराहोपनिषद्) - यानी जो ज्ञानी है, भक्त है, उसको संसार में सब जगह आनंद ही आनंद मिलता है। कहीं दुःख मिलता ही नहीं। अगर किसी ने उसे गाली दी, उसमें भी आनंद है, क्योंकि वो ये समझे रहता है कि इसने हम को नहीं, बल्कि हमारे शरीर को गाली दी। और हम शरीर तो हैं ही नहीं, तो हम फील क्यों करें? जैसे अगर किसी ने हमारे पडोसी को गाली दी, तो हम फील नहीं करते। समं मानापमानयोः - अगर हम अपने को आत्मा मान लें, तो चाहे कोई हमारी तारीफ़ करे, चाहे बुराई करे, दोनों 0/100।
साधना के समय हमें यह अभ्यास करना चाहिए कि हम अपमान को गले लगावें। यानी कोई हमारी बुराई करे और हम फील न करें। लगातार अभ्यास करने से फीलिंग समाप्त हो जाती है। शौक पैदा करो कि हमारी कोई बुराई करे, जबकि ये फैक्ट है कि जब तक जीव की भगवत्प्राप्ति न हो जाती, तब तक उसके पास संचित कर्म के रूप में अनंत जन्म के पाप जमे रहते हैं। उसमें से एक बात किसी ने बता दी, तो इसी में इतनी फीलिंग क्यों हो गई कि अब उसका चिंतन, मनन, भजन, कीर्तन करने लगे? उससे अपना नुकसान क्यों कर रहे हो ?
हम लोगों को सोचना चाहिए कि हम शरीर नहीं हैं, आत्मा हैं। और अगर हम महापुरुष भी हो जाएँ, और कोई हमको कहे कि तुम कामी हो, क्रोधी हो, आदि, तो भी इसलिए फील नहीं करना चाहिए क्योंकि वो जो कह रहा है, तुम हो ही नहीं। इस बेचारे का दिमाग खराब है, इसको नहीं दिखाई पड रहा है कि हम महापुरुष हैं। तो अगर कोई गलत बात कह रहा है, तो भी फील नहीं करना चाहिए।
क्रोध में जलने से आत्मा और शरीर, दोनों का नुकसान होता है। तुलसीदास कहते हैं कि निंदा करने वाले को अपने घर के आँगन में झोंपड़ी छवा के टिका दो कि रोज़ निंदा किया करो। महात्मा बुद्ध को एक आदमी ने सवेरे से शाम तक गाली देता रहा। शाम को महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य से कहा कि ये बेचारा थक गया होगा, इसको कुछ खिलाओ पिलाओ। उस आदमी ने अचंभित होकर कहा - "तुम आदमी हो कि पत्थर हो। मैंने तुम्हें इतनी गाली दी और तुम पर कोई असर ही नहीं हुआ!" तो महात्मा बुद्ध ने उससे कहा, "अगर भूखे आदमी की थाली में कोई पत्थर, मिट्टी, लकड़ी या गोबर परोस दे, तो भूखे होते हुए भी वो उसको नहीं खाएगा। तो वो सामान देने वाले के पास पड़ा रहेगा। उसी तरह तुमने दिन भर हमको जो कुछ भी दिया वो हमारे काम का था ही नहीं, इसलिए हमने लिया ही नहीं। तुमने गाली देते समय इतना गुस्सा किया, जलते रहे, तो वो तुम्हारा नुकसान हुआ। हमने उसको लिया ही नहीं। अगर तुम भगवान् की कोई लीला सुनाते तो उसे हम ले लेते। बुरी चीज़ हम क्यों लें?"
इसलिए फील करके अपना नुकसान मत करो। ये सब सोचना चाहिए और डेली अभ्यास करना चाहिए।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो साधना में आने वाली बाधाओं से आपकी रक्षा करेंगी :
साधक सावधानी - हिंदी
साधना में बाधा: हिंदी
कोई अपमानित करे तो क्या करें?
सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता परो ददातीति कुबुद्धिरेषा।
संसार में न सुख है न दुःख है। ये सोचना हमारी नासमझी है कि अमुक व्यक्ति से सुख मिलेगा और अमुक व्यक्ति से दुःख मिलेगा। अगर हम कहीं सुख न मानें तो दुःख भी अपने आप समाप्त हो जायेगा। वैराग्य का मतलब है कि हम यह डिसीज़न ले लें कि संसार में सुख नहीं है।
ज्ञस्यानंदमयं जगत् (वराहोपनिषद्) - यानी जो ज्ञानी है, भक्त है, उसको संसार में सब जगह आनंद ही आनंद मिलता है। कहीं दुःख मिलता ही नहीं। अगर किसी ने उसे गाली दी, उसमें भी आनंद है, क्योंकि वो ये समझे रहता है कि इसने हम को नहीं, बल्कि हमारे शरीर को गाली दी। और हम शरीर तो हैं ही नहीं, तो हम फील क्यों करें? जैसे अगर किसी ने हमारे पडोसी को गाली दी, तो हम फील नहीं करते। समं मानापमानयोः - अगर हम अपने को आत्मा मान लें, तो चाहे कोई हमारी तारीफ़ करे, चाहे बुराई करे, दोनों 0/100।
साधना के समय हमें यह अभ्यास करना चाहिए कि हम अपमान को गले लगावें। यानी कोई हमारी बुराई करे और हम फील न करें। लगातार अभ्यास करने से फीलिंग समाप्त हो जाती है। शौक पैदा करो कि हमारी कोई बुराई करे, जबकि ये फैक्ट है कि जब तक जीव की भगवत्प्राप्ति न हो जाती, तब तक उसके पास संचित कर्म के रूप में अनंत जन्म के पाप जमे रहते हैं। उसमें से एक बात किसी ने बता दी, तो इसी में इतनी फीलिंग क्यों हो गई कि अब उसका चिंतन, मनन, भजन, कीर्तन करने लगे? उससे अपना नुकसान क्यों कर रहे हो ?
हम लोगों को सोचना चाहिए कि हम शरीर नहीं हैं, आत्मा हैं। और अगर हम महापुरुष भी हो जाएँ, और कोई हमको कहे कि तुम कामी हो, क्रोधी हो, आदि, तो भी इसलिए फील नहीं करना चाहिए क्योंकि वो जो कह रहा है, तुम हो ही नहीं। इस बेचारे का दिमाग खराब है, इसको नहीं दिखाई पड रहा है कि हम महापुरुष हैं। तो अगर कोई गलत बात कह रहा है, तो भी फील नहीं करना चाहिए।
क्रोध में जलने से आत्मा और शरीर, दोनों का नुकसान होता है। तुलसीदास कहते हैं कि निंदा करने वाले को अपने घर के आँगन में झोंपड़ी छवा के टिका दो कि रोज़ निंदा किया करो। महात्मा बुद्ध को एक आदमी ने सवेरे से शाम तक गाली देता रहा। शाम को महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य से कहा कि ये बेचारा थक गया होगा, इसको कुछ खिलाओ पिलाओ। उस आदमी ने अचंभित होकर कहा - "तुम आदमी हो कि पत्थर हो। मैंने तुम्हें इतनी गाली दी और तुम पर कोई असर ही नहीं हुआ!" तो महात्मा बुद्ध ने उससे कहा, "अगर भूखे आदमी की थाली में कोई पत्थर, मिट्टी, लकड़ी या गोबर परोस दे, तो भूखे होते हुए भी वो उसको नहीं खाएगा। तो वो सामान देने वाले के पास पड़ा रहेगा। उसी तरह तुमने दिन भर हमको जो कुछ भी दिया वो हमारे काम का था ही नहीं, इसलिए हमने लिया ही नहीं। तुमने गाली देते समय इतना गुस्सा किया, जलते रहे, तो वो तुम्हारा नुकसान हुआ। हमने उसको लिया ही नहीं। अगर तुम भगवान् की कोई लीला सुनाते तो उसे हम ले लेते। बुरी चीज़ हम क्यों लें?"
इसलिए फील करके अपना नुकसान मत करो। ये सब सोचना चाहिए और डेली अभ्यास करना चाहिए।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो साधना में आने वाली बाधाओं से आपकी रक्षा करेंगी :
साधक सावधानी - हिंदी
साधना में बाधा: हिंदी
Read Next
The Mind Is the Battlefield- The Eternal Conflict Between Desire and Detachment
The scriptures and Vedas present two seemingly contradictory statements. One states that detachment from the world must happen first, while the other declares that attachment to God must come first. In explaining this, Shri Maharaj Ji has emphasized a crucial point - both detachment and attachment happen only in the
Daily Devotion - June 5, 2025 (Hindi)- अकेले जाना होगा
हम लोग संसार में माँ के पेट में अकेले आये थे, दूसरा कोई साथ नहीं था। यहाँ आकर हमने अपनी गलती से अनेक साथी बना लिए और मेन मिस्टेक ये किया कि उनमें मन
Daily Devotion - June 3, 2025 (Hindi)- भक्ति की नींव
दीनता बढ़ाओ - हमें तीन बातें समझनी हैं और तीन काम करने हैं: 1. दीन भाव 2. रूपध्यान 3. श्यामा श्याम का नाम गुण लीलादि संकीर्तन। इनमें से
Daily Devotion - June 2, 2025 (English)- Now or Never
Two things are extremely rare in this world: 1. The Human Body. Even celestial devatas yearn for a human body because only in this body do we have the right to perform fruit-bearing actions. It is only through this body that we can attain God. After wandering in other life