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Daily Devotion - May 19, 2025 (Hindi)- जैसे चाहो, वैसे श्याम
By Kripalu Bhaktiyoga Tattvadarshan profile image Kripalu Bhaktiyoga Tattvadarshan

Daily Devotion - May 19, 2025 (Hindi)- जैसे चाहो, वैसे श्याम

केवल रूपध्यान पर ध्यान देना है। जैसे संसार में स्त्री पुरुष आदि का हम ध्यान करते हैं वैसे ही भगवान् का ध्यान करना है। लेकिन भगवान् के

केवल रूपध्यान पर ध्यान देना है। जैसे संसार में स्त्री पुरुष आदि का हम ध्यान करते हैं वैसे ही भगवान् का ध्यान करना है। लेकिन भगवान् के यहाँ कुछ कायदा कानून नहीं है - जैसा रूप पसंद हो वैसा बना लो, जैसा नाम पसंद हो, लो, जैसा श्रृंगार पसंद हो वैसा कर लो- सब अपनी इच्छानुसार, कोई शास्त्र वेद पढ़ने की ज़रूरत नहीं। चाहे आँख बंद करके या सामने खड़ा करके रूपध्यान करो। सब काम मन से - कोई मूर्ति की ज़रूरत नहीं। श्री महाराज जी मूर्ति पूजा की दीक्षा नहीं देते। आठ प्रकार की मूर्तियों में एक मनोमयी होती है - इसमें कोई पैसा खर्च नहीं होना, मन से ही कोहिनूर हीरे का हार पहना दो, कोई पूजा सामग्री खरीदने की ज़रूरत नहीं, मन से ही बना लो। मूर्ति तो प्रारम्भ में रूप बनाने में अवलम्ब लेने के लिए प्रयोग की जा सकती है।

और इस इम्पोर्टेन्ट पॉइंट पर ध्यान दो - अगर रूपध्यान करते समय बेटा, बीवी, पति, पिता आदि के पास मन चला गया तो गुस्सा नहीं करो, ये प्रारम्भ में होता है, होगा, इससे घबराना नहीं। जहाँ भी मन जाए वहीं श्यामसुंदर को खड़ा कर दो। तो मन एक दिन थक जायेगा और स्थिर हो जायेगा। फिर रूपध्यान बिना बनाए नेचुरल आता रहेगा - अभ्यास से सब कुछ हो जाता है। जैसे कोई चाय, सिगरेट, शराब आदि पहले शौक से पीता है। लेकिन कुछ दिनों के बाद जब हैबिट हो जाती है ये जड़ वस्तु भी हमारे दिमाग में पिंच करती हैं। और भगवान् तो आनंद सिंधु हैं - अगर लगातार उनके पीछे पड़ जाएँ तो वो दिमाग से कभी हटेंगे ही नहीं। हिम्मत न हारो, कि "अरे! आधा घंटा हो गया, दो बार ही रूपध्यान बना।" आज दो बार बना, तो कल तीन बार बनेगा, फिर चार बार - अभ्यास करो। जब तुम पैदा हुए थे, तो दौड़ने तो नहीं लगे। तब तो तुम्हें करवट बदलना भी नहीं आता था। फिर बैठना, खड़े होना, चलना - इन सब को करने के पहले हज़ारों बार गिरे - बड़ी मेहनत करनी पड़ी। चाहे इंद्र का लड़का हो - सबको करना पड़ता है। फिर एक दिन कम्पटीशन में दौड़ने लगे। ये कम्पटीशन में दौड़ने वाली स्थिति कितने अभ्यास के बाद आई। संसार के सब काम हमने अभ्यास से ही किया है, बिना अभ्यास से कोई काम नहीं होता।
भगवान् ने अर्जुन को यही दवाई बताई थी, जब अर्जुन ने कहा चंचलं हि मनः कृष्ण - मन बहुत चंचल है।
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्‌ । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।
श्री कृष्ण ने कहा - बिल्कुल ठीक कहते हो। लेकिन अभ्यास और वैराग्य से अनंत महापुरुषों में अपने मन पर कण्ट्रोल किया है। वो भी हमारी तरह थे पहले। लेकिन प्रतिज्ञा कर लिया और अभ्यास में जुट गए। उसी प्रकार रूपध्यान का अभ्यास करना है। मनमाना रूप बनाओ - बालक, युवा, हज़ार बरस का बूढ़ा श्री कृष्ण बना लो। तुमको जो पसंद हो बना लो। त्वं स्त्री, त्वं पुमान् त्वं जीर्णो दण्डेन वञ्चसि - भगवान् कहते हैं "मुझको सब कुछ बनना पड़ता है। तुमको जो पसंद होगा हम बन जाएँगे। हमें कोई ऐतराज़ नहीं है।" मनुष्यों के लिए भगवान् की इतनी दया है कि कोई भी प्रतिबन्ध नहीं है। कहीं भी बैठकर ध्यान करो। न समय की कोई पाबंदी है। नहाये नहीं तो भी कोई समस्या नहीं है। नहाना तो शरीर के लिए है, भगवान् की उपासना के लिए नहीं।
यः स्मरेत पुण्डरीकांक्षं - श्री कृष्ण का जो स्मरण करे, स बाह्यभ्यंतर: शुचि:- उसकी बाहर की भी शुद्धि हो गई और अंदर की भी शुद्धि हो गई - स्मरण मात्र से। ज्ञान और कर्म में बड़े-बड़े कानून हैं, भक्ति में कोई कानून नहीं है - न देश नियमस्तत्र न काल नियमस्तथा। न देश का नियम है, कि यहाँ पर बैठकर करो, या वहाँ करो ये तो गंदी जगह है। जब भगवान् सर्वत्र व्याप्त हैं, गंदी जगह कौनसी होती है? प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना। मंदिर के भगवान् बड़े थोड़े ही होते हैं? मंदिर में जो भगवान् हैं, वही गन्दी जगह भी हैं - दो भगवान् नहीं होते। ये रियलाइज़ करो। तुमने भगवान् को ऐसा लिमिटेड बना लिया कि जो मंदिर की मूर्ति है, वो भगवान् हैं। मंदिर की मूर्ति तो इसलिए रखी गई है कि उसका आइडिया लेकर स्मरण करो। भगवान् तो सब जगह एक-से बराबर हैं।

ये नहीं सोचना कि इस मंदिर के भगवान् में कुछ खास बात है। भगवान् का सही बटा नहीं हुआ करता। भगवान् के धाम में ये विशेष बात ज़रूर है कि यहाँ भगवान् ने ये लीला की थी, ये सोचकर मन को खुशी मिलती है और ध्यान लगता है। और कोई फरक नहीं है। जिसका हम ध्यान कर रहे हैं उसी पर्सनैलिटी का फल हमें मिलेगा। तो रूपध्यान बिलकुल आसान है। जो नाम पसंद हो लो। यशोदा मैया ने कभी कृष्ण नहीं कहा। उन्होंने कृष्ण को कनुआ और बलराम को बलुआ कहा। लेकिन भगवान् उनके पीछे-पीछे भागते हैं क्योंकि उनका अन्दर से स्मरण सही है। भगवान् बाहरी क्रिया को नहीं देखते - वे अंदर की भावना को देखते हैं। तो रूपध्यान बहुत सरल है।

इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:

Murti Pooja - Hindi

Rupdhyan Vijnana - Hindi

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