हम लोग संसार में माँ के पेट में अकेले आये थे, दूसरा कोई साथ नहीं था। यहाँ आकर हमने अपनी गलती से अनेक साथी बना लिए और मेन मिस्टेक ये किया कि उनमें मन का अटैचमेंट कर लिया। संसार में लोग बड़े विभोर होकर रहते हैं कि सब हमारे मुआफ़िक हैं। हम सोचते हैं कि सदा ऐसे ही रहेगा। हम ये नहीं सोच रहे हैं कि हमें अकेले जाना होगा। हमारे साथ एक वस्तु जाएगी - उसका नाम है कर्म।
हमने पैदा होने से लेकर मृत्यु तक जो कुछ भी किया उसको कर्म कहते हैं। कर्म भी खास तौर से दो प्रकार के होते हैं - एक कर्म मन के अटैचमेंट से युक्त होता है और एक कर्म फलासक्ति रहित होता है। फलासक्ति रहित कर्म का फल नहीं मिलता। लेकिन जिसमें हमारे मन का अटैचमेंट होता है उस कर्म का फल मिलता है। वो कर्म भी तीन प्रकार के होते हैं -
- पाप (झूठ धोखा, बातें बनाना) - इसका फल नरक ,
- पुण्य (दान देना, सहायता करना , सच बोलते हैं कभी) - इसका फल स्वर्ग, और
- भगवान् की भक्ति - यह असली कर्म है (जब संसार की चप्पलें पड़ती हैं ज़ोरदार, हम भगवान् को भी याद करते हैं, डरकर ही सही)।
हम तीनों प्रकार के कर्म करते हैं। लेकिन ये सब कर्म हम तो याद नहीं रख सकते - हमारी इतनी मेमोरी ही नहीं है, खासकर कलियुग में। अच्छे खासे काबिल माने जाने वाले भी चौबीस घंटे क्या, दो घंटे पहले की बात भी याद नहीं रख पाते। मन्दा: सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रुता:॥
तो असली कर्म सिर्फ भगवान् की भक्ति है - यानी आपने कितना रूपध्यान किया, उनका प्रेम और दर्शन माँगने के लिए कितने आँसू बहाये - ये असली भक्ति है। अगर संसार माँगने गए, वो तो भक्ति नहीं है बल्कि ढोंग है, धोखा है। तो भक्ति ही असली साथी है जो साथ जाएगी और वो वहीं ले जायेगी जहाँ जाने से तुम्हारा काम बनेगा। अगर तुमने 80% भगवान् में मन लगा दिया और मर गए तो भगवान् तुमको ऐसी जगह पैदा करेंगे जिसके माँ बाप दोनों भक्त हों, भक्ति का एटमॉस्फियर (वातावरण) हो और बचपन से ही भगवान् की भक्ति में नेचुरल लगन लगा लोगे, जिसको देखकर माँ बाप को भी आश्चर्य होगा। क्योंकि भगवान् आपके पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार आपके आइडियाज़ बना देते हैं (साधु कर्म कारयति)- पहले की कमाई दे देते हैं। तो बाकी 20% की साधना में जो कमी रह गई, वो आप पूरी कर लेंगे, चाहे एक जन्म हो, दो हो, या दस में करना चाहो, लेकिन करना होगा।
तो इस प्रकार वो कर्म ही तुम्हारा साथी है (भगवद्भक्ति) - इसलिए अपने साथी को खूब बना लो ताकि यमराज के दूत सम्मान से ले जाएँ, पिटाई करते हुए नहीं। वो पापात्माओं की धुलाई करके ले जाते हैं - उस समय कोई काम नहीं देगा। उस समय तुम्हारे मम्मी पापा भाई आदि रिश्तेदार यहीं बैठकर शोक मना रहे होंगे। इस बात को बार-बार सोचना चाहिए जिससे अभ्यास बना रहे। ताकि अकेले जाते समय हाय-हाय न करो - क्योंकि तुमने जिनमें मन का अटैचमेंट किया है, मरते समय वो तुम्हें अपनी ओर खींचेंगे। संसार में अटैचमेंट नहीं करोगे तो आराम से जाओगे। जिसने इसका अभ्यास नहीं किया, वो मरते समय बहुत रोयेगा, क्योंकि उसको बहुत कष्ट होगा - जाना तो पड़ेगा ही सीधे नहीं तो टेढ़े।
इस बात को रोज़ 2-4 मिनट सोचा करो -
सबको जाना होगा और अकेले जाना होगा। साथी सिर्फ भगवद्भक्ति है - वो जितनी कमा लो बस वही तुम्हारी बढ़िया साथी है ओर वो तुमको ठीक जगह पर ले जायेगी और फिर थोड़ी जो कमी है वो पूरी हो जाएगी - शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो साधना में आने वाली बाधाओं से आपकी रक्षा करेंगी :
Tattvajnan ka Mahatva - Hindi
हम लोग संसार में माँ के पेट में अकेले आये थे, दूसरा कोई साथ नहीं था। यहाँ आकर हमने अपनी गलती से अनेक साथी बना लिए और मेन मिस्टेक ये किया कि उनमें मन का अटैचमेंट कर लिया। संसार में लोग बड़े विभोर होकर रहते हैं कि सब हमारे मुआफ़िक हैं। हम सोचते हैं कि सदा ऐसे ही रहेगा। हम ये नहीं सोच रहे हैं कि हमें अकेले जाना होगा। हमारे साथ एक वस्तु जाएगी - उसका नाम है कर्म।
हमने पैदा होने से लेकर मृत्यु तक जो कुछ भी किया उसको कर्म कहते हैं। कर्म भी खास तौर से दो प्रकार के होते हैं - एक कर्म मन के अटैचमेंट से युक्त होता है और एक कर्म फलासक्ति रहित होता है। फलासक्ति रहित कर्म का फल नहीं मिलता। लेकिन जिसमें हमारे मन का अटैचमेंट होता है उस कर्म का फल मिलता है। वो कर्म भी तीन प्रकार के होते हैं -
हम तीनों प्रकार के कर्म करते हैं। लेकिन ये सब कर्म हम तो याद नहीं रख सकते - हमारी इतनी मेमोरी ही नहीं है, खासकर कलियुग में। अच्छे खासे काबिल माने जाने वाले भी चौबीस घंटे क्या, दो घंटे पहले की बात भी याद नहीं रख पाते। मन्दा: सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रुता:॥
तो असली कर्म सिर्फ भगवान् की भक्ति है - यानी आपने कितना रूपध्यान किया, उनका प्रेम और दर्शन माँगने के लिए कितने आँसू बहाये - ये असली भक्ति है। अगर संसार माँगने गए, वो तो भक्ति नहीं है बल्कि ढोंग है, धोखा है। तो भक्ति ही असली साथी है जो साथ जाएगी और वो वहीं ले जायेगी जहाँ जाने से तुम्हारा काम बनेगा। अगर तुमने 80% भगवान् में मन लगा दिया और मर गए तो भगवान् तुमको ऐसी जगह पैदा करेंगे जिसके माँ बाप दोनों भक्त हों, भक्ति का एटमॉस्फियर (वातावरण) हो और बचपन से ही भगवान् की भक्ति में नेचुरल लगन लगा लोगे, जिसको देखकर माँ बाप को भी आश्चर्य होगा। क्योंकि भगवान् आपके पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार आपके आइडियाज़ बना देते हैं (साधु कर्म कारयति)- पहले की कमाई दे देते हैं। तो बाकी 20% की साधना में जो कमी रह गई, वो आप पूरी कर लेंगे, चाहे एक जन्म हो, दो हो, या दस में करना चाहो, लेकिन करना होगा।
तो इस प्रकार वो कर्म ही तुम्हारा साथी है (भगवद्भक्ति) - इसलिए अपने साथी को खूब बना लो ताकि यमराज के दूत सम्मान से ले जाएँ, पिटाई करते हुए नहीं। वो पापात्माओं की धुलाई करके ले जाते हैं - उस समय कोई काम नहीं देगा। उस समय तुम्हारे मम्मी पापा भाई आदि रिश्तेदार यहीं बैठकर शोक मना रहे होंगे। इस बात को बार-बार सोचना चाहिए जिससे अभ्यास बना रहे। ताकि अकेले जाते समय हाय-हाय न करो - क्योंकि तुमने जिनमें मन का अटैचमेंट किया है, मरते समय वो तुम्हें अपनी ओर खींचेंगे। संसार में अटैचमेंट नहीं करोगे तो आराम से जाओगे। जिसने इसका अभ्यास नहीं किया, वो मरते समय बहुत रोयेगा, क्योंकि उसको बहुत कष्ट होगा - जाना तो पड़ेगा ही सीधे नहीं तो टेढ़े।
इस बात को रोज़ 2-4 मिनट सोचा करो -
सबको जाना होगा और अकेले जाना होगा। साथी सिर्फ भगवद्भक्ति है - वो जितनी कमा लो बस वही तुम्हारी बढ़िया साथी है ओर वो तुमको ठीक जगह पर ले जायेगी और फिर थोड़ी जो कमी है वो पूरी हो जाएगी - शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।
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