दीनता बढ़ाओ -
हमें तीन बातें समझनी हैं और तीन काम करने हैं:
- दीन भाव
- रूपध्यान
- श्यामा श्याम का नाम गुण लीलादि संकीर्तन।
इनमें से हम एक करते हैं - संकीर्तन। किन्तु दो नहीं करते। केवल रसना से संकीर्तन करना ऐसे है जैसे प्राण हीन शरीर। बिना दीनता और रूपध्यान के आँसू नहीं आयेंगे। बिना आँसू का कीर्तन, कीर्तन नहीं है। वो तो तोता रटंत है। इन्द्रियों के वर्क को तो भगवान् नोट ही नहीं करते।
- दीन भाव - यह भक्ति के विषय में पहला अध्याय है - नम्रता बढ़ाओ। सबको सम्मान देने की भावना रखो। अपने में सबसे नीचे की भावना रखो। माया के सब अवगुण (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य) हमारे अंदर हैं। बार-बार सोचो, "मैं अधम हूँ, पतित हूँ, गुनहगार हूँ। भगवान् के कीर्तन में भी आँसू नहीं बहाता। मैं ये नहीं मानता कि सब में भगवान् बैठे हैं। नास्तिक हूँ मैं!" ऐसे बार-बार फील करो, रियलाइज़ करो। अगर कोई बुराई करे भी तो यही कहेगा कि "तुम कामी हो, क्रोधी हो, लोभी हो, बदमाश हो" आदि। वो तो हम हैं ही हैं। हम महापुरुष तो नहीं हैं। बुराई करने वाला तो हमारा हितैषी है। वो हमारे अवगुण बता रहा है। निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय (तुलसीदास) - आँगन में उसकी कुटी बना दो ताकि वो रोज़ निंदा करे और तुम अभ्यास करो कि बुरा नहीं मानेंगे। सब में भगवान बैठे हैं। कभी भी किसी के प्रति दुर्भावना न लाओ, दोष न देखो, नीचा न समझो, द्वेष न लाओ। निन्दनीय के प्रति भी निन्दनीय की भावना न हो क्योंकि इससे हमारा मन और गंदा हो जायेगा। इससे भगवान् प्रसन्न नहीं होंगे। गुरु भी दुःखी होंगे यह सोचकर कि "मैंने इतना समझाया, फिर भी ये मन में राग-द्वेष लाकर उसको गन्दा कर रहा है।" मन में भगवान् और गुरु को लाओ, यही दो शुद्ध हैं, इन्हीं से मन शुद्ध होगा। ईश्वरीय जगत में लोकरंजन की बुद्धि न लाओ। जितना अधिक अपने में नीच भावना करोगे, उतने तुम भगवान् के प्रिय बनोगे - ये याद कर लो सबक - भगवत्प्राप्ति तक काम देगा। अन्यथा ये माया बड़ी खतरनाक है। लोकरंजन की बुद्धि से बड़े-बड़े योगीश्वरों का पतन हो गया।
- रूपध्यान - मन से भगवान को सामने खड़ा करो। जितना मन भगवान् का रूपध्यान करेगा उतना ही भगवान् के पास जाओगे, भगवान् तुम्हारे पास आएँगे।
- श्यामा श्याम नाम गुण लीला संकीर्तन - रोकर पुकारो। ये प्रमुख साधना है, और ये दीनता के बिना नहीं होगी।
सोते समय सोचो - आज हमने कहाँ अहंकार किया ? कहाँ हमने प्रतिष्ठा की भावना बनाई मन में ? यह मूर्ख मन ही हमें 84 लाख में घुमा रहा है।
अहंकार घोर शत्रु है उससे बचकर साधना करो। सबसे बड़ी बात - जो अंदर गड़बड़ी आप लोगों ने पैदा कर ली है, उसको निकाल दो। जिसके प्रति दुर्भावना हो गई है, उसके पास जाएँ, उससे क्षमा मांगें और मधुर व्यवहार करें - ऐसा व्यवहार करें कि वो झुक जाए। ये विशेषता होनी चाहिए। इसका अभ्यास करना है।
इस तरह साधना करो और फिर देखो दिन प्रतिदिन कितनी उन्नति होगी। फिर देखो कृपालु बिना बुलाये बार-बार आयेंगे और आपकी सेवा करेंगे।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो साधना में आने वाली बाधाओं से आपकी रक्षा करेंगी :
Ahankar aur Bhakti - Hindi
दीनता बढ़ाओ -
हमें तीन बातें समझनी हैं और तीन काम करने हैं:
इनमें से हम एक करते हैं - संकीर्तन। किन्तु दो नहीं करते। केवल रसना से संकीर्तन करना ऐसे है जैसे प्राण हीन शरीर। बिना दीनता और रूपध्यान के आँसू नहीं आयेंगे। बिना आँसू का कीर्तन, कीर्तन नहीं है। वो तो तोता रटंत है। इन्द्रियों के वर्क को तो भगवान् नोट ही नहीं करते।
सोते समय सोचो - आज हमने कहाँ अहंकार किया ? कहाँ हमने प्रतिष्ठा की भावना बनाई मन में ? यह मूर्ख मन ही हमें 84 लाख में घुमा रहा है।
अहंकार घोर शत्रु है उससे बचकर साधना करो। सबसे बड़ी बात - जो अंदर गड़बड़ी आप लोगों ने पैदा कर ली है, उसको निकाल दो। जिसके प्रति दुर्भावना हो गई है, उसके पास जाएँ, उससे क्षमा मांगें और मधुर व्यवहार करें - ऐसा व्यवहार करें कि वो झुक जाए। ये विशेषता होनी चाहिए। इसका अभ्यास करना है।
इस तरह साधना करो और फिर देखो दिन प्रतिदिन कितनी उन्नति होगी। फिर देखो कृपालु बिना बुलाये बार-बार आयेंगे और आपकी सेवा करेंगे।
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