हम लोगों को एक बात बहुत ध्यान रखने की है कि यह मानव देह को पाने के लिये स्वर्ग के देवता तरसते हैं क्योंकि 84 लाख देहों में यही एक देह ऐसा है जिसमें हम कमाई करके संसार से परे ईश्वरीय आनंद से युक्त होकर सदा को भगवान के लोक में रहेंगे। और इसमें कोई नियम, कायदा, कानून नहीं है - केवल उनको अपना मानना है, क्योंकि अपना स्वार्थ सिद्ध उन्हीं से होगा। हरि गुरु के अतिरिक्त हमारा कोई नहीं है। बार बार सोचो - अकेले जाना होगा, बाकी सब छूट जायेंगे और न ही टाइम लिमिट है कि कितने दिन और रहेंगे और न तो ये है की एक आदमी अपने साथ ले जाएँगे सेवा के लिए।
यह अनमोल खज़ाना मानव देह बार बार नहीं मिलेगा। हमें जो मिली हैं उनमें एक-एक चीज़ दुर्लभ है - दुर्लभं त्रयमेवैतत् दैवानुग्रहकारकं -
- मानव देह (कबहुँक करि करुना नर देही)
- महापुरुष का मिलना
- हम उनको महापुरुष मानकर, उनके आदेश के अनुसार चलें, उन पर और उनके वाणी पर विश्वास करें। ये तीनों चीज़ अगर किसी को मिल गई हों, फिर भी अगर काम नहीं बना सका तो उसके समान कोई अभागा न था, न है, न होगा।
(श्री महाराज जी की) एक बात का बहुत सावधान होकर अभ्यास करो - हम अकेले नहीं हैं, हमारे हृदय में श्याम सुन्दर बैठकर हमारे आइडियाज़ नोट कर रहे हैं। इस बात को विश्वास करके हर एक घंटे में एक बार एक सेकंड को, फिर आधे घंटे में एक बार, एक सेकंड को महसूस करें।
थोड़े दिन के अभ्यास के बाद हर समय आपको अनुभव होने लगेगा कि वो अंदर बैठे हैं। फिर आप टाइम खराब नहीं करेंगे। हर समय होशियार रहेंगे कि अगला क्षण मिले न मिले। इस साधना का अभ्यास हमारी भेंट समझकर अवश्य कीजिये - यह सबसे बड़ी सेवा होगी। अगर आप अभ्यास करके अपना कल्याण करने के लिए आगे बढ़ेंगे तो हमको नाक के बल, सिर के बल चलकर फिर जल्दी आना पड़ेगा।
आज ही से शुरू कर दें।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Hari Guru Smaran - Dainik Chintan - Hindi
Bar Bar Padho Suno Samjho - Hindi
हम लोगों को एक बात बहुत ध्यान रखने की है कि यह मानव देह को पाने के लिये स्वर्ग के देवता तरसते हैं क्योंकि 84 लाख देहों में यही एक देह ऐसा है जिसमें हम कमाई करके संसार से परे ईश्वरीय आनंद से युक्त होकर सदा को भगवान के लोक में रहेंगे। और इसमें कोई नियम, कायदा, कानून नहीं है - केवल उनको अपना मानना है, क्योंकि अपना स्वार्थ सिद्ध उन्हीं से होगा। हरि गुरु के अतिरिक्त हमारा कोई नहीं है। बार बार सोचो - अकेले जाना होगा, बाकी सब छूट जायेंगे और न ही टाइम लिमिट है कि कितने दिन और रहेंगे और न तो ये है की एक आदमी अपने साथ ले जाएँगे सेवा के लिए।
यह अनमोल खज़ाना मानव देह बार बार नहीं मिलेगा। हमें जो मिली हैं उनमें एक-एक चीज़ दुर्लभ है - दुर्लभं त्रयमेवैतत् दैवानुग्रहकारकं -
(श्री महाराज जी की) एक बात का बहुत सावधान होकर अभ्यास करो - हम अकेले नहीं हैं, हमारे हृदय में श्याम सुन्दर बैठकर हमारे आइडियाज़ नोट कर रहे हैं। इस बात को विश्वास करके हर एक घंटे में एक बार एक सेकंड को, फिर आधे घंटे में एक बार, एक सेकंड को महसूस करें।
थोड़े दिन के अभ्यास के बाद हर समय आपको अनुभव होने लगेगा कि वो अंदर बैठे हैं। फिर आप टाइम खराब नहीं करेंगे। हर समय होशियार रहेंगे कि अगला क्षण मिले न मिले। इस साधना का अभ्यास हमारी भेंट समझकर अवश्य कीजिये - यह सबसे बड़ी सेवा होगी। अगर आप अभ्यास करके अपना कल्याण करने के लिए आगे बढ़ेंगे तो हमको नाक के बल, सिर के बल चलकर फिर जल्दी आना पड़ेगा।
आज ही से शुरू कर दें।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Hari Guru Smaran - Dainik Chintan - Hindi
Bar Bar Padho Suno Samjho - Hindi
Read Next
Daily Devotion - June 16, 2025 (English)- Who Controls Destiny?
Question by a sadhak - Can prārabdh (destiny) be altered? Shri Maharaj Ji's answer - Saints and God are capable of doing anything (kartumakartumanyathākartuṃ samartha) - they can act as they wish, refrain from acting, or act contrary to expectation - Rāma bhagata kā kari na sakāhiṃ However,
Daily Devotion - June 14, 2025 (English)- Who is Shyamsundar?
You must know the identity of the One with whom you wish to establish a relationship. yasmāt paraṃ nāparamasti kiñcit, yasmānnāṇīyo na jyāyo'sti kaścit - Shri Krishna is the One beyond whom there is nothing else. A question was posed in the Vedas: Ka: paramo deva:? - Who
Daily Devotion - June 10, 2025 (Hindi)- शाश्वत प्रतीक्षा
तुम मेरे थे मेरे हो मेरे रहोगे (आ या ना आ मुरली वारे) हमने किसी को बुलाया और वो नहीं आया तो हमारा मूड ऑफ हो जाता है। हमारी तबीयत खराब थी और वो
Daily Devotion - June 09, 2025 (English)-Love Without Terms
Tum mere the mere ho mere rahoge (aa ya na aa murli vare) If you call someone and they do not come, you feel hurt. If you are unwell and they do not visit or inquire about your condition, you will harbor resentment against them for life. This is the