हमें दो प्रकार की साधना करनी है -
- हफ्ते में एक बार (शनिवार या रविवार को) 2-3 घंटे का सम्मिलित संकीर्तन किसी सज्जन के घर पर करें।
- एकांत साधना - ये प्रतिदिन करें भले ही एक घंटा करें। सवेरे, दोपहर शाम कभी भी करें। समय की कोई पाबंदी नहीं, कोई नियम कायदा कानून नहीं है। लेकिन राधा कृष्ण और गुरु का रूपध्यान करें, और रोकर उनसे दिव्य प्रेम माँगें, जो गोपियों को मिला था। संसार न माँगें, मोक्ष भी न माँगें। गोपी प्रेम का ही लक्ष्य रखें। जिन गोपियों की चरणधूलि ब्रह्मा शंकर आदि चाहते हैं, हमें उस सीट पर जाना है। आप लोग ऐसा लक्ष्य बनाकर चलें। भले ही दस या बीस जन्म लग जाएँ, लेकिन सबसे बड़ा रस मिले। साधना में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए रूपध्यान परमावश्यक है, उसमें लापरवाही न करें। और उसमें गुरु को भी साथ रखें - यस्य देवे पराभक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ। जैसी भक्ति राधाकृष्ण के प्रति हो, वैसी ही भक्ति गुरु के प्रति हो। तो रूपध्यान सामने बनाओ। उसके लिए चाहे फोटो रख लें या मूर्ति का सहारा लें, जैसे मन लगे। लेकिन श्री महराज जी हमें मन से रूप बनाने की राय देते हैं क्योंकि उसमें ये लाभ है कि मन से हम जैसे चाहें रूप बना सकते हैं। और मन से जो भी रूप बनाएँ, उस रूप में भगवान् की भावना रखें। दास्य (वे हमारे स्वामी हैं), सख्य (वे हमारे सखा हैं), वात्सल्य (वे हमारे पुत्र हैं) और माधुर्य (वे हमारे प्रियतम हैं) - इन चारों भाव से, उनसे तुरंत का पैदा हुए बच्चे की तरह आँसू बहाकर निष्काम प्रेम माँगें - तभी भगवान् सुनेंगे, क्योंकि मन का प्यार ही भक्ति है। भूलकर भी उनसे संसार न माँगें वरना अगर आपकी कामना की पूर्ति नहीं हुई तो एक दिन आप नास्तिक बन जाएँगे। जब हम पैदा हुए थे, हम न कुछ बोल सकते थे, न इशारे से कुछ बता सकते थे। काम कैसे बनाते थे? क्या तरकीब करते थे? भूख लगी, रो दिए, पेट में दर्द हुआ, रो दिए ठंड लगी, रो दिए। हर बीमारी की हमारे पास एक दवा थी - रो देना। अब माँ अपनी सोचें कि क्यों रोया और उसका इलाज किया। तो हमारा काम श्यामसुंदर के सामने रोना है। पहले उनको अपने सामने खड़े करो, फिर आँसू बहाकर फिर राधे गोविन्द जो भी बोलो। रोकर पुकारो तब सुनेंगे।
केवल राम राम श्याम श्याम बोलना बुरा नहीं - नथिंग से समथिंग अच्छा है। लेकिन उससे आपका काम नहीं बनेगा। क्योंकि जहाँ आपके मन का अटैचमेंट होगा, उसी का फल भगवान् देते हैं। तो मन का अटैचमेंट ही भक्ति है। आप एक बार भी राधे न कहें, श्याम न कहें, कोई आवश्यकता नहीं। मन का प्यार हो जाए, भगवान् भागे आएँगे।
दूसरी बात, हर समय हर जगह, भीतर ही भीतर रियलाइज़ करें कि श्याम सुन्दर हमारे हृदय में बैठकर हमारे विचार नोट कर रहे हैं। इससे हम पाप करने से बचेंगे, और भक्ति अपने आप होती जाएगी। मनुष्य के डर से ही हम पाप कम करते हैं ये सोचकर कि वो देख रहा है। भगवान् तो सदा देख रहे हैं, तो फिर आप प्राइवेट क्या सोचते हैं अपना? तो आप लोग जो प्राइवसी रखते हैं कि "मैं जो सोच रहा हूँ, वो कोई नहीं जानता", बस यही अपराध का मूल कारण है। आप भूल गए कि भगवान् नोट करते हैं - हर क्षण सदा सर्वत्र सदा से सदा तक। इस सिद्धांत को बार-बार मानो।
इसके लिए पहले हर एक घंटे में, फिर हर आधे घंटे में अभ्यास करते रहें कि श्याम सुन्दर मेरे अंदर बैठे हैं। ऐसे करते करते हर समय हमको ऐसा लगेगा कि अनंतकोटि ब्रह्माण्ड नायक सर्वशक्तिमान भगवान् हमारे हृदय में बैठे हैं, और हम मस्ती में रहेंगे कि हम कितने मालदार हैं। ये अभ्यास हमको करना पड़ेगा। चाहे इस जनम में करें या करोड़ों कल्प कुत्ते, बिल्ली, गधे आदि की योनियों में घूमने के बाद फिर कभी भगवान् कृपा करके जब मानव देह देंगे, तब करें। लेकिन बिना किये हमको छुट्टी नहीं मिलेगी।
इसलिए जो मनुष्य शरीर का अवसर अब मिला है, इसका लाभ लें और अपना कल्याण करें - ये श्री महाराज जी की आज्ञा भी है और प्रार्थना भी है।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Practical sadhna Hindi
हमें दो प्रकार की साधना करनी है -
केवल राम राम श्याम श्याम बोलना बुरा नहीं - नथिंग से समथिंग अच्छा है। लेकिन उससे आपका काम नहीं बनेगा। क्योंकि जहाँ आपके मन का अटैचमेंट होगा, उसी का फल भगवान् देते हैं। तो मन का अटैचमेंट ही भक्ति है। आप एक बार भी राधे न कहें, श्याम न कहें, कोई आवश्यकता नहीं। मन का प्यार हो जाए, भगवान् भागे आएँगे।
दूसरी बात, हर समय हर जगह, भीतर ही भीतर रियलाइज़ करें कि श्याम सुन्दर हमारे हृदय में बैठकर हमारे विचार नोट कर रहे हैं। इससे हम पाप करने से बचेंगे, और भक्ति अपने आप होती जाएगी। मनुष्य के डर से ही हम पाप कम करते हैं ये सोचकर कि वो देख रहा है। भगवान् तो सदा देख रहे हैं, तो फिर आप प्राइवेट क्या सोचते हैं अपना? तो आप लोग जो प्राइवसी रखते हैं कि "मैं जो सोच रहा हूँ, वो कोई नहीं जानता", बस यही अपराध का मूल कारण है। आप भूल गए कि भगवान् नोट करते हैं - हर क्षण सदा सर्वत्र सदा से सदा तक। इस सिद्धांत को बार-बार मानो।
इसके लिए पहले हर एक घंटे में, फिर हर आधे घंटे में अभ्यास करते रहें कि श्याम सुन्दर मेरे अंदर बैठे हैं। ऐसे करते करते हर समय हमको ऐसा लगेगा कि अनंतकोटि ब्रह्माण्ड नायक सर्वशक्तिमान भगवान् हमारे हृदय में बैठे हैं, और हम मस्ती में रहेंगे कि हम कितने मालदार हैं। ये अभ्यास हमको करना पड़ेगा। चाहे इस जनम में करें या करोड़ों कल्प कुत्ते, बिल्ली, गधे आदि की योनियों में घूमने के बाद फिर कभी भगवान् कृपा करके जब मानव देह देंगे, तब करें। लेकिन बिना किये हमको छुट्टी नहीं मिलेगी।
इसलिए जो मनुष्य शरीर का अवसर अब मिला है, इसका लाभ लें और अपना कल्याण करें - ये श्री महाराज जी की आज्ञा भी है और प्रार्थना भी है।
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