गुरु की कृपा से भगवान् मिलते हैं - शास्त्रों में सर्वत्र विरोधाभास है - यानी दो तरह की बातें लिखी हैं।
यह भी लिखा है कि -भगवान् की कृपा से गुरु मिलते हैं।
और यह भी लिखा है कि -गुरु की कृपा से भगवान् मिलते हैं।
इनमें से क्या सही है - यह पहेली है।
श्री महाराज जी का उत्तर - दोनों बातें सही हैं -
- भगवान् की कृपा से गुरु मिलते हैं - यह भी सही है।
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता। सत संगति संसृति कर अंता॥
बिना भगवान् की कृपा के संत नहीं मिला करते - वे ढूँढ़ने से नहीं मिलते क्योंकि हम अपनी मायिक बुद्धि के पैमाने से एक वास्तविक संत को नाप ही नहीं सकते - उनको हम कभी पहचान नहीं सकते। संसार में अगर कोई किसी को गाली देता है, तो पहले उसके अंतःकरण में क्रोध आता है। लेकिन करोड़ों मर्डर करते हुए भी एक महापुरुष के अंतःकरण में क्रोध होता ही नहीं। हमारी बुद्धि तो इस बात को मान ही नहीं सकती। अर्जुन और हनुमान जी ने करोड़ों मर्डर किए। हनुमान जी ने तो सीना फ़ाड़कर दिखा दिया कि सीताराम हमारे अंदर बैठे हैं। सोते समय भी उनका रोम-रोम "राम राम" कहता है। ध्रुव, प्रह्लाद, अम्बरीष और टॉप के महापुरुष ब्रजगोपियाँ हैं - उनमे काम नहीं है और बच्चे पैदा हो रहे हैं।
ये कैसे हो रहा है?
श्रीकृष्ण आत्माराम हैं - लेकिन उन्होंने सोलह हज़ार एक सौ आठ ब्याह किया - डिक्लेयर्ड - और अनंत गोपियाँ अलग हैं। और एक-एक स्त्री के दस-दस बच्चे हैं। और सब बच्चे आवारा हो गए - प्रभास क्षेत्र में सब आपस में लड़कर मर गए। बल्कि भगवान् ने ही उनको जान-बूझकर मरवाया, यह सोचकर कि ये तो हज़ारों महाभारत कर डालेंगे। लेकिन उनकी स्त्रियाँ तो महापुरुषों की दादी थीं और वे स्वयं भगवान् हैं, तो उनकी संताने ऐसी कैसे पैदा हुईं - बुद्धि लगाओगे तो पागल हो जाओगे। तुम नहीं समझ सकते।
भगवान् और महापुरुष को क्या, तुम तो अपने माँ, बाप, बेटे, बीवी, को भी नहीं समझ सके। जब तुम संसार को ही नहीं जान सकते तो महापुरुष और भगवान् को कैसे समझोगे? -
i) तुम्हारी बुद्धि तीन गुण की है - और वे मायातीत हैं।
ii) तुम्हारे कार्य माया से होते हैं। भगवान् और महापुरुष के कार्य योगमाया से होते हैं। यानी वे अपनी पर्सनैलिटी में रहते हुए माया का कार्य करते हैं, जैसे कमल के पत्ते पर जल रहता है।
iii) चूंकि तुम ये सब नहीं कर सकते, तुम यह सोचते हो कि यह कोई नहीं कर सकता। तुम्हारे एक्सपीरिएंस और आइडिया वहाँ नहीं जा सकते, क्योंकि तुम माया के अंडर में हो।
लेकिन -
अगर ये सही है कि भगवान् की कृपा से संत मिलते हैं, तो सबको संत मिलना चाहिए। एक को संत मिल गए, एक को नहीं मिले - ऐसा क्यों होता है? भगवान् की कृपा भी दो तरह की होती है क्या? सब भगवान् के बच्चे हैं - सब पर एक जैसी कृपा होनी चाहिए।
लेकिन ऐसा नहीं है। इसके लिए ये नियम है कि -
पुण्य पुंज बिनु मिलहिं न संता -
बिना पुण्य पुंज के संत नहीं मिलते। पूर्व जन्म में हमारे साधन, यानी सुकृत प्रारब्ध से संत मिलते हैं।
तो अगर हमारे पुण्य पुंज से संत मिलते हैं, तो फिर ये क्यों कहते हैं कि हरि कृपा से संत मिलते हैं?
तुम्हारे पुण्य पुंज तो कर्म हैं। कोई भी कर्म स्वयं जड़ हैं, वो अपने आप फल नहीं बन सकता। जीव तो अपने पूर्व जन्म को ही नहीं जानता तो वह अपने कर्म को क्या जानेगा। यह काम भगवान् ही करते हैं। सर्वज्ञ भगवान् हमारे पुण्य पुंज को नोट करते हैं। फिर उसका फल बनाकर ऐसा हिसाब बिठाते हैं कि तुम वहाँ जाओ, तुमको वह संत मिलेगा, फिर तुम्हारे ऊपर कृपा करेगा, फिर तुम हमारी ओर आओगे। लेकिन वे उसी का ऐसा हिसाब बिठाते हैं जिसने पूर्व जन्म में साधना की है। इसलिए पुण्य पुंज भी कम्पल्सरी है और भगवत्कृपा भी कम्पल्सरी है।
- गुरु की कृपा से भगवान् मिलते हैं - यह भी सही है।
शास्त्रों को समझना हमारी बुद्धि से परे है। यह हमें संत ही समझा सकते हैं।
सो बिनु संत न काहू पाई - बिना गुरु कृपा से आज तक किसी को भक्ति ही नहीं मिली तो भगवान् कैसे मिलेंगे?
जब द्रवहिं दीन दयाल राघव साधु संगति पाइये - महापुरुष के मिलने पर ही भक्ति मिलती है। संत ही हमको तत्त्वज्ञान देकर साधना कराते हैं। फिर अंतःकरण शुद्ध होने पर उसको दिव्य बनाते हैं। फिर उस दिव्य अंतःकरण में दिव्य प्रेम प्रदान कर भगवान् का दर्शन कराते हैं।
तो यह क्रम है:
i) पूर्व जन्म में हमने पुण्य पुंज कमाया।
ii) भगवान् ने कृपा करके उस पुण्य पुंज का फल देकर गुरु से मिलाया।
iii) गुरु ने हमें तत्वज्ञान देकर साधना कराई।
iv) फिर साधना से अंतःकरण शुद्ध हुआ।
v) फिर गुरु की स्पेशल कृपा हुई, फिर - वे हमें दिव्य भक्ति देकर भगवान् का दिव्य दर्शन करवाते हैं।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
Guru Kripa - Hindi
Bhagavad Gita Jnana (Set of 6) - Hindi
गुरु की कृपा से भगवान् मिलते हैं - शास्त्रों में सर्वत्र विरोधाभास है - यानी दो तरह की बातें लिखी हैं।
यह भी लिखा है कि -भगवान् की कृपा से गुरु मिलते हैं।
और यह भी लिखा है कि -गुरु की कृपा से भगवान् मिलते हैं।
इनमें से क्या सही है - यह पहेली है।
श्री महाराज जी का उत्तर - दोनों बातें सही हैं -
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता। सत संगति संसृति कर अंता॥
बिना भगवान् की कृपा के संत नहीं मिला करते - वे ढूँढ़ने से नहीं मिलते क्योंकि हम अपनी मायिक बुद्धि के पैमाने से एक वास्तविक संत को नाप ही नहीं सकते - उनको हम कभी पहचान नहीं सकते। संसार में अगर कोई किसी को गाली देता है, तो पहले उसके अंतःकरण में क्रोध आता है। लेकिन करोड़ों मर्डर करते हुए भी एक महापुरुष के अंतःकरण में क्रोध होता ही नहीं। हमारी बुद्धि तो इस बात को मान ही नहीं सकती। अर्जुन और हनुमान जी ने करोड़ों मर्डर किए। हनुमान जी ने तो सीना फ़ाड़कर दिखा दिया कि सीताराम हमारे अंदर बैठे हैं। सोते समय भी उनका रोम-रोम "राम राम" कहता है। ध्रुव, प्रह्लाद, अम्बरीष और टॉप के महापुरुष ब्रजगोपियाँ हैं - उनमे काम नहीं है और बच्चे पैदा हो रहे हैं।
ये कैसे हो रहा है?
श्रीकृष्ण आत्माराम हैं - लेकिन उन्होंने सोलह हज़ार एक सौ आठ ब्याह किया - डिक्लेयर्ड - और अनंत गोपियाँ अलग हैं। और एक-एक स्त्री के दस-दस बच्चे हैं। और सब बच्चे आवारा हो गए - प्रभास क्षेत्र में सब आपस में लड़कर मर गए। बल्कि भगवान् ने ही उनको जान-बूझकर मरवाया, यह सोचकर कि ये तो हज़ारों महाभारत कर डालेंगे। लेकिन उनकी स्त्रियाँ तो महापुरुषों की दादी थीं और वे स्वयं भगवान् हैं, तो उनकी संताने ऐसी कैसे पैदा हुईं - बुद्धि लगाओगे तो पागल हो जाओगे। तुम नहीं समझ सकते।
भगवान् और महापुरुष को क्या, तुम तो अपने माँ, बाप, बेटे, बीवी, को भी नहीं समझ सके। जब तुम संसार को ही नहीं जान सकते तो महापुरुष और भगवान् को कैसे समझोगे? -
i) तुम्हारी बुद्धि तीन गुण की है - और वे मायातीत हैं।
ii) तुम्हारे कार्य माया से होते हैं। भगवान् और महापुरुष के कार्य योगमाया से होते हैं। यानी वे अपनी पर्सनैलिटी में रहते हुए माया का कार्य करते हैं, जैसे कमल के पत्ते पर जल रहता है।
iii) चूंकि तुम ये सब नहीं कर सकते, तुम यह सोचते हो कि यह कोई नहीं कर सकता। तुम्हारे एक्सपीरिएंस और आइडिया वहाँ नहीं जा सकते, क्योंकि तुम माया के अंडर में हो।
लेकिन -
अगर ये सही है कि भगवान् की कृपा से संत मिलते हैं, तो सबको संत मिलना चाहिए। एक को संत मिल गए, एक को नहीं मिले - ऐसा क्यों होता है? भगवान् की कृपा भी दो तरह की होती है क्या? सब भगवान् के बच्चे हैं - सब पर एक जैसी कृपा होनी चाहिए।
लेकिन ऐसा नहीं है। इसके लिए ये नियम है कि -
पुण्य पुंज बिनु मिलहिं न संता -
बिना पुण्य पुंज के संत नहीं मिलते। पूर्व जन्म में हमारे साधन, यानी सुकृत प्रारब्ध से संत मिलते हैं।
तो अगर हमारे पुण्य पुंज से संत मिलते हैं, तो फिर ये क्यों कहते हैं कि हरि कृपा से संत मिलते हैं?
तुम्हारे पुण्य पुंज तो कर्म हैं। कोई भी कर्म स्वयं जड़ हैं, वो अपने आप फल नहीं बन सकता। जीव तो अपने पूर्व जन्म को ही नहीं जानता तो वह अपने कर्म को क्या जानेगा। यह काम भगवान् ही करते हैं। सर्वज्ञ भगवान् हमारे पुण्य पुंज को नोट करते हैं। फिर उसका फल बनाकर ऐसा हिसाब बिठाते हैं कि तुम वहाँ जाओ, तुमको वह संत मिलेगा, फिर तुम्हारे ऊपर कृपा करेगा, फिर तुम हमारी ओर आओगे। लेकिन वे उसी का ऐसा हिसाब बिठाते हैं जिसने पूर्व जन्म में साधना की है। इसलिए पुण्य पुंज भी कम्पल्सरी है और भगवत्कृपा भी कम्पल्सरी है।
शास्त्रों को समझना हमारी बुद्धि से परे है। यह हमें संत ही समझा सकते हैं।
सो बिनु संत न काहू पाई - बिना गुरु कृपा से आज तक किसी को भक्ति ही नहीं मिली तो भगवान् कैसे मिलेंगे?
जब द्रवहिं दीन दयाल राघव साधु संगति पाइये - महापुरुष के मिलने पर ही भक्ति मिलती है। संत ही हमको तत्त्वज्ञान देकर साधना कराते हैं। फिर अंतःकरण शुद्ध होने पर उसको दिव्य बनाते हैं। फिर उस दिव्य अंतःकरण में दिव्य प्रेम प्रदान कर भगवान् का दर्शन कराते हैं।
तो यह क्रम है:
i) पूर्व जन्म में हमने पुण्य पुंज कमाया।
ii) भगवान् ने कृपा करके उस पुण्य पुंज का फल देकर गुरु से मिलाया।
iii) गुरु ने हमें तत्वज्ञान देकर साधना कराई।
iv) फिर साधना से अंतःकरण शुद्ध हुआ।
v) फिर गुरु की स्पेशल कृपा हुई, फिर - वे हमें दिव्य भक्ति देकर भगवान् का दिव्य दर्शन करवाते हैं।
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