अंत मति सोइ गति -
सभी शास्त्रों, वेदों का निर्विवाद सिद्धान्त है कि मृत्युकाल में हम जिसका स्मरण करेंगे उसी की प्राप्ति होगी।
चार प्रकार के लोगों का हम स्मरण करते हैं - तीन माया के लोग - सात्विक, राजसिक, तामसिक। और एक दिव्य एरिया का, भगवान् और महापुरुष, मायातीत, जो शुद्ध हैं। मृत्यु के समय इन्हीं चार में कहीं हमारा मन रहता है।
भगवान् अर्जुन कहते हैं -
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्। यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।
"अर्जुन! शरीर छोड़ते समय मेरा स्मरण करना होगा - तब मेरे पास आएगा वो जीव।"
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्। तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः। -
मरते समय जिस किसी का भी स्मरण करेगा कोई, मृत्यु के बाद उसी की प्राप्ति होगी। जड़ भारत परमहंस हिरण का स्मरण करके मरे, तो मरने के बाद उनको हिरण बनना पड़ा। फिर छोटे-मोटे की क्या गिनती।
भगवान् ने अर्जुन से कहा - त
स्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध्य च -
इसलिए अर्जुन! तुम 'निरंतर' मन मुझ में लगाये रहना, चाहे युद्ध करे, चाहे कहीं रहे, कुछ करे क्योंकि पता नहीं कब मृत्यु हो जाएगी। अगर मनुष्य जानता हो कि 8:05 पर हम मरेंगे, तो 8:00 बजे तक मक्कारी करता रहे। और जब 8:05 होने वाला हो, तब भगवान् का स्मरण कर ले। ये भगवान् की एक बड़ी चालाकी है कि वे अपने महापुरुषों को छोड़कर किसी को मृत्यु का समय नहीं बताते।
ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् - चाहे कोई भगवान् का नाम ले या न ले, लेकिन उनका मन से स्मरण ज़रूर करे।
मरते समय लोग अपने बेटा या बेटी, यानि जिसमें भी मन का अधिक अटैचमेंट हो उसको बुलाते हैं कि "एक बार देख लूँ, चिपटा लूँ।" और तो और. लोग ये भी कहते हैं "अब तो हम जा ही रहे हैं - एक बार हलुआ खिला दो।"
इसलिए अगर हम सदा स्मरण करते रहेंगे, तभी पार पाएँगे। अन्यथा पता नहीं किस क्षण में घंटी बज जाए। फिर अगर एक सेकंड और माँगो - बिल्कुल नहीं!
सतत, निरंतर, नित्य - इन शब्दों की भरमार है गीता, भागवत, रामायण - सर्वत्र - निरंतर स्मरण करना क्योंकि मृत्युकाल कब होगा - कोहि जानाति कस्याद्य मृत्युकालो भविष्यति - ये कोई नहीं जानता।
यह पाठ हमेशा याद रखिये - पता नहीं कब हार्ट अटैक हो जाए। मन को हरि-गुरु में ही रखना है, तो फिर मरने के बाद गोलोक जाएँगे। ये एक दम से नहीं होगा। अगर ऑफिस में काम कर रहे हो तो मेज़ के एक साइड में श्यामसुंदर को बिठा लो और काम करते रहो। लेकिन पहले हर आधा घंटे में, फिर धीरे-धीरे हर पंद्रह मिनिट में, फिर हर पाँच मिनट में अभ्यास कीजिये - रियलाइज़ कीजिये कि वे हमारे साथ हैं। ऐसे अभ्यास करते करते साल-दो साल में हर समय ये फीलिंग होगी कि वे हमारे साथ हैं। और ये फैक्ट है ही कि वे अंदर बैठे हैं। और बाहर भी सर्वव्यापक हैं।
सर्वतः पाणिपादं सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्। - सगुण साकार होकर भी वे सर्वव्यापक हैं।
यद्यपि साकारोऽयं तथैकदेशी विभाति यदुनाथः। लेकिन सर्वगत: - वे सब जगह साकार रूप में भी हैं - निराकार रूप में तो हैं ही। इसका भी अभ्यास करना होगा। हमने गुरु से बहुत सी निधियाँ पाईं - लेकिन उन्हें खो देते हैं। शास्त्र वेद कहते हैं - आवृत्तिरसकृत् उपदेशात् - बार बार सुनो, बार बार सोचो। बार बार चिंतन करने से फिर वो अभ्यास में आ जाएगा। भगवान् को छोडो, शराब, चाय, सिगरेट आदि गंदी चीज़ों का कुछ दिन सेवन करने से फिर वो अपने आप दिमाग में चुभती हैं कि फिर से पियो। ये सब बीमारियाँ पैदा होते समय नहीं थे - बड़े होकर हमने पाला है। तो जब ऐसी जड़ वस्तुएँ हमको पकड़ लेती हैं और मस्तिष्क में घूमती रहती हैं, भगवान् तो आनंदसिंधु हैं, अगर उनका बार बार स्मरण करेंगे तो वहाँ तो आनंद ही आनंद है, वह कैसे छूटेगा? लेकिन उसके लिए अभ्यास करना होगा।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
बार-बार पढ़ो, सुनो, समझो – हिन्दी
हरि गुरु स्मरण – दैनिक चिन्तन
Join http://jkp.org.in/live-radio for Live updates
अंत मति सोइ गति -
सभी शास्त्रों, वेदों का निर्विवाद सिद्धान्त है कि मृत्युकाल में हम जिसका स्मरण करेंगे उसी की प्राप्ति होगी।
चार प्रकार के लोगों का हम स्मरण करते हैं - तीन माया के लोग - सात्विक, राजसिक, तामसिक। और एक दिव्य एरिया का, भगवान् और महापुरुष, मायातीत, जो शुद्ध हैं। मृत्यु के समय इन्हीं चार में कहीं हमारा मन रहता है।
भगवान् अर्जुन कहते हैं -
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्। यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।
"अर्जुन! शरीर छोड़ते समय मेरा स्मरण करना होगा - तब मेरे पास आएगा वो जीव।"
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्। तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः। -
मरते समय जिस किसी का भी स्मरण करेगा कोई, मृत्यु के बाद उसी की प्राप्ति होगी। जड़ भारत परमहंस हिरण का स्मरण करके मरे, तो मरने के बाद उनको हिरण बनना पड़ा। फिर छोटे-मोटे की क्या गिनती।
भगवान् ने अर्जुन से कहा - त
स्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध्य च -
इसलिए अर्जुन! तुम 'निरंतर' मन मुझ में लगाये रहना, चाहे युद्ध करे, चाहे कहीं रहे, कुछ करे क्योंकि पता नहीं कब मृत्यु हो जाएगी। अगर मनुष्य जानता हो कि 8:05 पर हम मरेंगे, तो 8:00 बजे तक मक्कारी करता रहे। और जब 8:05 होने वाला हो, तब भगवान् का स्मरण कर ले। ये भगवान् की एक बड़ी चालाकी है कि वे अपने महापुरुषों को छोड़कर किसी को मृत्यु का समय नहीं बताते।
ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् - चाहे कोई भगवान् का नाम ले या न ले, लेकिन उनका मन से स्मरण ज़रूर करे।
मरते समय लोग अपने बेटा या बेटी, यानि जिसमें भी मन का अधिक अटैचमेंट हो उसको बुलाते हैं कि "एक बार देख लूँ, चिपटा लूँ।" और तो और. लोग ये भी कहते हैं "अब तो हम जा ही रहे हैं - एक बार हलुआ खिला दो।"
इसलिए अगर हम सदा स्मरण करते रहेंगे, तभी पार पाएँगे। अन्यथा पता नहीं किस क्षण में घंटी बज जाए। फिर अगर एक सेकंड और माँगो - बिल्कुल नहीं!
सतत, निरंतर, नित्य - इन शब्दों की भरमार है गीता, भागवत, रामायण - सर्वत्र - निरंतर स्मरण करना क्योंकि मृत्युकाल कब होगा - कोहि जानाति कस्याद्य मृत्युकालो भविष्यति - ये कोई नहीं जानता।
यह पाठ हमेशा याद रखिये - पता नहीं कब हार्ट अटैक हो जाए। मन को हरि-गुरु में ही रखना है, तो फिर मरने के बाद गोलोक जाएँगे। ये एक दम से नहीं होगा। अगर ऑफिस में काम कर रहे हो तो मेज़ के एक साइड में श्यामसुंदर को बिठा लो और काम करते रहो। लेकिन पहले हर आधा घंटे में, फिर धीरे-धीरे हर पंद्रह मिनिट में, फिर हर पाँच मिनट में अभ्यास कीजिये - रियलाइज़ कीजिये कि वे हमारे साथ हैं। ऐसे अभ्यास करते करते साल-दो साल में हर समय ये फीलिंग होगी कि वे हमारे साथ हैं। और ये फैक्ट है ही कि वे अंदर बैठे हैं। और बाहर भी सर्वव्यापक हैं।
सर्वतः पाणिपादं सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्। - सगुण साकार होकर भी वे सर्वव्यापक हैं।
यद्यपि साकारोऽयं तथैकदेशी विभाति यदुनाथः। लेकिन सर्वगत: - वे सब जगह साकार रूप में भी हैं - निराकार रूप में तो हैं ही। इसका भी अभ्यास करना होगा। हमने गुरु से बहुत सी निधियाँ पाईं - लेकिन उन्हें खो देते हैं। शास्त्र वेद कहते हैं - आवृत्तिरसकृत् उपदेशात् - बार बार सुनो, बार बार सोचो। बार बार चिंतन करने से फिर वो अभ्यास में आ जाएगा। भगवान् को छोडो, शराब, चाय, सिगरेट आदि गंदी चीज़ों का कुछ दिन सेवन करने से फिर वो अपने आप दिमाग में चुभती हैं कि फिर से पियो। ये सब बीमारियाँ पैदा होते समय नहीं थे - बड़े होकर हमने पाला है। तो जब ऐसी जड़ वस्तुएँ हमको पकड़ लेती हैं और मस्तिष्क में घूमती रहती हैं, भगवान् तो आनंदसिंधु हैं, अगर उनका बार बार स्मरण करेंगे तो वहाँ तो आनंद ही आनंद है, वह कैसे छूटेगा? लेकिन उसके लिए अभ्यास करना होगा।
इस विषय से संबंधित जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनुशंसित पुस्तकें:
बार-बार पढ़ो, सुनो, समझो – हिन्दी
हरि गुरु स्मरण – दैनिक चिन्तन
Join http://jkp.org.in/live-radio for Live updates
Read Next
Daily Devotion -Apr 28, 2025 (English)
Benefits of Pilgrimage - Question - What is the difference between the idols of God in pilgrimage places (līlā sthal - where God performed his divine pastimes) and the saints residing there? Shri Maharaj Ji's answer - First, understand the philosophy behind this - * When Shri Krishna descended
The Real Reason You’re Never at Peace
Of all the suffering that the soul is enduring, three are most significant - 1. Ādhyātmik 2. Ādhibhautik 3. Ādhidaivik Among these, Ādhyātmik is the most prominent. We are two - 1. the individual soul, and 2. the body in which we reside. Accordingly, Ādhyātmik suffering is also of two
Daily Devotion -Apr 24, 2025 (Hindi)
अहंकार - भक्ति में बाधा भगवद्भक्ति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है अहंकार। अहंकार नाम का खतरनाक दुश्मन हमें भगवान् के पास नहीं जाने देता। अपने
Daily Devotion -Apr 21, 2025 (English)
How do we know where we stand spiritually? One cannot determine this on their own. The mind, which experiences ups and downs, can never pass judgement against itself. In other words, our mind is flawed, yet we are asking that same mind, "Am I flawed?" It will naturally