अहंकार - भक्ति में बाधा
भगवद्भक्ति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है अहंकार। अहंकार नाम का खतरनाक दुश्मन हमें भगवान् के पास नहीं जाने देता। अपने को अच्छा कहलवाने का अभ्यास न करके अच्छा बनने का प्रयास करो।
भगवान् दीनबन्धु हैं, पतित पावन हैं, बशर्ते तुम रियलाइज़ करो कि मैं अनंत जन्मों का पापात्मा हूँ। हमारे अंदर सब दोष हैं, अहंकार करने लायक कोई चीज़ है ही नहीं। इसलिए किसी के वाक्य को फील नहीं करो। निंदक नियरे राखिये - निंदक हमारा हितैषी है। फील नहीं करने का अभ्यास करो। दूसरों में दोष नहीं देखो, उससे आपका मन और गंदा हो जाएगा। जिस क्षण में आपका मन भगवान् में नहीं है, उस क्षण में आप पाप कर रहे हैं ।
इसलिये अपने अंदर भगवान् को लाओ। इससे मन शुद्ध हो जायेगा। सहनशील बनो, विनम्र बनो। अपने लिये मान मत चाहो, दूसरे को मान दो। जितने सहनशील बनोगे, उतनी ही आत्मशक्ति बढ़ेगी, भगवान के पास जाओगे। ये बड़े बड़े महापुरुष जैसे तुलसी, सूर, नानक तुकाराम, सब हमारी तरह ही थे पहले, बल्कि हमसे भी गए गुज़रे थे। लेकिन लग गए अच्छा बनने के लिए। बस, अभ्यास से बन गए - अपने को पतित मान लिया, फैक्ट को एडमिट कर लिया। बस भगवान के प्यारे हो गए। भगवान जिस चीज़ को चाहते हैं, वो हम उनको दें, बस वे खुश हो जाएँगे और कृपा कर देंगे।
भगवान् की प्राप्ति के लिए हमें यह शरीर मिला है। लेकिन यह मानव शरीर नश्वर है, पता नहीं कब छिन जाये। ये लापरवाही कितने दिन चलेगी? इसलिए गंभीरतापूर्वक विचार करके, अपने को अच्छा मानना बंद करके, फैक्ट को एडमिट करके, दीनता बढ़ाना चाहिए। उसी से हम भगवान् के समीप जाएँगे। इसका अभ्यास करना होगा।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो साधना में आने वाली बाधाओं से आपकी रक्षा करेंगी :
अहंकार और भक्ति
साधना में बाधा: हिंदी
अहंकार - भक्ति में बाधा
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भगवान् दीनबन्धु हैं, पतित पावन हैं, बशर्ते तुम रियलाइज़ करो कि मैं अनंत जन्मों का पापात्मा हूँ। हमारे अंदर सब दोष हैं, अहंकार करने लायक कोई चीज़ है ही नहीं। इसलिए किसी के वाक्य को फील नहीं करो। निंदक नियरे राखिये - निंदक हमारा हितैषी है। फील नहीं करने का अभ्यास करो। दूसरों में दोष नहीं देखो, उससे आपका मन और गंदा हो जाएगा। जिस क्षण में आपका मन भगवान् में नहीं है, उस क्षण में आप पाप कर रहे हैं ।
इसलिये अपने अंदर भगवान् को लाओ। इससे मन शुद्ध हो जायेगा। सहनशील बनो, विनम्र बनो। अपने लिये मान मत चाहो, दूसरे को मान दो। जितने सहनशील बनोगे, उतनी ही आत्मशक्ति बढ़ेगी, भगवान के पास जाओगे। ये बड़े बड़े महापुरुष जैसे तुलसी, सूर, नानक तुकाराम, सब हमारी तरह ही थे पहले, बल्कि हमसे भी गए गुज़रे थे। लेकिन लग गए अच्छा बनने के लिए। बस, अभ्यास से बन गए - अपने को पतित मान लिया, फैक्ट को एडमिट कर लिया। बस भगवान के प्यारे हो गए। भगवान जिस चीज़ को चाहते हैं, वो हम उनको दें, बस वे खुश हो जाएँगे और कृपा कर देंगे।
भगवान् की प्राप्ति के लिए हमें यह शरीर मिला है। लेकिन यह मानव शरीर नश्वर है, पता नहीं कब छिन जाये। ये लापरवाही कितने दिन चलेगी? इसलिए गंभीरतापूर्वक विचार करके, अपने को अच्छा मानना बंद करके, फैक्ट को एडमिट करके, दीनता बढ़ाना चाहिए। उसी से हम भगवान् के समीप जाएँगे। इसका अभ्यास करना होगा।
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